समस्याओं का समाधान नहीं, स्कूल खटखटाएंगे अदालत का दरवाजा

दिल्ली के अनएडेड बजट प्राइवेट स्कूलों ने दिल्ली सरकार पर बजट प्राइवेट स्कूलों की समस्याओं के समाधान के प्रति गंभीर न होने का आरोप लगाया है। स्कूलों का कहना है कि सरकार ने उनके साथ वादा खिलाफी की है और समस्याओं के सामाधान की बजाए उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिले हैं। नाराज स्कूलों ने समस्याओं के जल्द समाधान न होने की दशा में धरना प्रदर्शन करने और अदालत का दरवाजा खटखटाने की बात कही है।

सोमवार को प्रेस क्लब में दिल्ली के अनएडेड स्कूलों ने बजट स्कूलों की अखिल भारतीय संस्था नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल्स अलायंस (निसा) व कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ पब्लिक स्कूल्स (सीसीपीएस) के संयुक्त तत्वावधान में एक संवाददाता सम्मेलन का आयोजन किया। संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ पब्लिक स्कूल्स के चेयरमैन आर. के. शर्मा ने बताया कि गतवर्ष सितंबर महीने में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने बजट स्कूलों को राहत देने के लिए सार्वजनिक तौर पर घोषणा की थी कि स्कूलों को मान्यता प्रदान करने के लिए जमीन की बजाए कमरों की संख्या को आधार बनाया जाएगा। शर्मा ने बताया कि उस घोषणा के बाद से इस संदर्भ में कोई प्रगति अबतक नहीं हुई है और हमारे बार बार प्रयास के बावजूद कोई पहल नहीं की जा रही है।

निसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा ने कहा कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार के काम करने के सबसे अलग तौर तरीकों से हमें बड़ी आस बंधी थी, लेकिन अब यह आस टूटती दिख रही है। कुलभूषण ने कहा कि यदि दिल्ली सरकार की ओर से शीघ्र हमारी समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता है तो मजबूरी में हमें धरने प्रदर्शन का सहारा लेना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि स्कूलों के पास कोर्ट जाने का विकल्प खुला है।

दिल्ली इंडिपेंडेंट स्कूल्स अलायंस (दिसा) के अध्यक्ष राजेश मल्होत्रा ने बताया कि बजट प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता से कहीं अच्छी है और यह बात तमाम सरकारी और

गैरसरकारी अध्ययनों में साबित हो चुकी है। उन्होंने कहा कि निजी स्कूलों में प्रतिछात्र खर्च सरकारी स्कूलों के प्रतिछात्र खर्च से बहुत कम है। मल्होत्रा ने बताया कि बजट स्कूलों के साथ होने वाला भेदभाव तभी खत्म हो सकता है जब उनके लिए अलग बोर्ड की व्यवस्था हो।

निसा के पॉलिसी एडवाइजर अमित चंद्र ने कहा कि यदि सरकार सिर्फ तीन कदम उठा लेती है तो दिल्ली में शिक्षा के क्षेत्र की तमाम समस्याओं का समाधान निकल सकता है। वे तीन कदम; शिक्षा का फंड स्कूलों की बजाए छात्रों को प्रदान करना, स्कूलों को मान्यता प्रदान करने के लिए छात्रों के सीखने की क्षमता को भी आधार मानना और सरकार को अपनी भूमिका को रेग्युलेटर की बजाए फेसिलिटेटर के तौर पर विकसित करना।

सीसीपीएस के चंद्रकांत सिंह ने कहा कि दिल्ली में छात्रों की संख्या की तुलना में स्कूलों की भारी कमी है। यह कमी स्कूलों को मान्यता प्रदान करने के लिए आवश्यक जमीन की अनिवार्यता के कारण है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में जमीन की कमी के कारण स्कूलों को कमरों के आधार पर मान्यता प्रदान करने से बड़ी संख्या में गैरमान्यता प्राप्त स्कूलों को मान्यता मिल जाएगी। इससे सभी को शिक्षा प्रदान करने के सरकार के उद्देश्य को प्राप्त करने में भी आसानी होगी।

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