अहंकार को समाप्त किए बिना कोई भी महान नहीं बन सकता

डा ०एम०सी० जैन

कहा जाता है अहंकार सभी में होता है ये एक ऐसा मनोभाव है जो प्रत्येक सांसारिक प्राणी में समाहित है इस मनोभाव को समाप्त किए बिना कोई भी महान नहीं बन सकता । जिस प्रकार नदी जब तक अपने अस्तित्व को समाप्त नहीं कर लेती है तब तक सागर का रूप नहीं ले सकती है , उसी प्रकार तक हम अपने जीवन में अहंकार को समाप्त नहीं कर लेते है हम अपने जीवन को महान नहीं बना सकते है ।

अहंकार मनुष्य का शत्रु और नम्रता मनुष्य का मित्र है । विनयरुपी सम्पदा जिसके जीवन में है , उसका जीवन कभी भी अशांत नहीं हो सकता है । इस सम्बन्ध में ये कहा जा सकता है की वृक्ष में जितने अधिक फल होते है उतना ही वह झुक जाता है । उसी प्रकार हमारे जीवन में जितनी अधिक नम्रता आएगी हम उतने हम महान बनते जाएंगे | जिसने अध्यात्म को , संसार की क्षणभंगुरता को समझा , वह कभी अहंकार नही कर सकता ।

जीवन को महान बंनाने का एक अचूक नुख्सा है - मृदुता । मृदुता और कोमलता के द्धारा जहाँ एक ओर आप अपने जीवन को महान बना सकते हैं वहीं दूसरी ओर अहंकार के द्धारा आप उसे पतन की ओर ले जा सकते हैं | मृदुता और कोमलता रूपी झाड़ू से हम अपने आत्मा रूपी महल की सफाई कर अपने जीवन को महान बना सकते है

अहंकार रूपी बीज से क्रोध रूपी फल ही पनपता है दाँत एवं जीभ एक स्थान पर रहते हुए भी दाँत अपनी कठोरता के कारण गिर जाते है , वहीं जीभ अपनी मृदुता के कारण जीवन पर्यन्त साथ रहती है।

हमे अगर महावीर, बुद्ध और राम बनना है तो अपने जीवन से अहंकार को त्यागकर तथा कोमलता को स्थान देना होगा |

Labels: , , ,