और बेचारी उस अबोध का भविष्य अंधकारमय हो गया .....

राजकुमार जैन ‘‘अण्णा’’ 

असम की राजधानी गुवाहाटी में एक होटल के बाहर एक 16 वर्षीय युवती के साथ सार्वजनिक रूप से लगभग आधा घंटे तक उसका कुछ भ्रष्ट युवकों ने शर्मनाक रूप से सरेआम शोषण किया, अश्लीलता की सारी हदें पार कर दी गईं और तो और किसी भी राहगीर ने युवकों द्वारा की जा रही इस हरकत से उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की। स्थानीय पुलिस की उस दौरान गैरमौजूदगी में इस भ्रष्ट आचार के सामने सदाचार साफ तौर पर बेबस सा दिखाई दिया और इस मौके पर किए जा सकने वाले सामाजिक हस्तक्षेप की बेबसी पर अनेक प्रश्न चिन्ह छोड़ गया। यहाँ साफ तौर पर समाज को दी जाने वाली प्रेरणा की अभिव्यक्ति को पुरुषार्थ और पराक्रम का अमलीजामा पहनाने की सख्त आवश्यकता महसूस हुई। उस पीड़ित युवती के परिवारजनों की उसके सुन्दर भविष्य की कल्पनाओं के पंख कट गए और बेचारी उस अबोध का भविष्य अंधकारमय हो गया। उसके जीवन की उज्ज्वलता पर फिलहाल अंधकार की कालिमा छा गई है।

इस शर्मनाक दुर्घटना के बाद भारत सरकार के केन्द्रीय गृहमंत्री तक को इस घटना की सार्वजनिक रूप से निन्दा करनी पड़ी, जोकि स्वाभाविक भी था। लेकिन मेरा चिन्तन कुछ अलग है कि, क्यों ऐसी घटना घटी? क्यों समाज आज भी ऐसी रोज़ाना घट रही घटनाओं के बावजूद सुप्त प्रायः है? यदि समाज में इस तरह की घटनाओं के प्रति जागरूकता आ जाए तो शायद न्याय प्रणालियों का काम काफी आसान हो जाएगा और समाज में पनप रहे ऐसे शोहदों की हिम्मत कभी ऐसा दुस्साहस करने की नहीं होगी, जोकि युवतियों, महिलाओं के प्रति अपनी हीन प्रवृत्तियों को किसी भी रूप में सार्वजनिक रूप से प्रताड़ना देने, घरेलू हिंसा करने, यौनाचार संबंधी कृत्यों को अंजाम देने हेतु तत्पर रहते हैं।

आवश्यकता है कि नारी को अब जाग्रति के पथ पर सशक्त होकर आगे बढ़ना है जिससे कि उसका शोषण करने वाले इस बारे में सोच भी न सकें। सार्वजनिक उत्पीड़न, उनके विरुद्ध होने वाली यौन हिंसा, घरेलू हिंसा आदि जैसी अनेकों प्रकार की घटनाओं का शिकार होने वाली नारी को सजगतापूर्वक अब आगे बढ़ना है क्योंकि अधिकारों का उपयोग न करने वाला ही स्वयं के शोषण को आमंत्रण देता है, अतः दृढ़ संकल्प को अपना आत्मबल बना कर नारी को स्वयं को अब साहसी प्रदर्शित करना है। जीवन के हर मायने में उसे पुरुषों की तुलना में अपनी सहभागिता को उत्कृष्ट बनाना है। वैसे भी सच्चा साहसी वही है जो किसी भी विपत्ति से बुद्धिमत्तापूर्वक एवं सफलतापूर्वक बाहर आ जाए। कहते हैं कि किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए सच्चा संकल्प ही अंतर आत्मा का बल है, कहा भी है कि सच्ची लगन को कभी कांटों की परवाह नहीं हुई।

आज की नारी निडरता की राह पर अग्रसर हो और सजग बनकर समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर गतिमान रहे। नारी को कदम-कदम पर अब प्रताड़ना का शिकार नहीं बनना है। यह नारी ही है जिसने जीवन की कला को अपने हाथों से साकार कर संस्कृति और सभ्यता का रूप निखारा है अतः नारी का अस्तित्व ही सुन्दर जीवन का आधार है। प्रगति की राह पर पहुंचने के लिए नारी को अभी कई घुमावदार सीढ़ियाँ पार करनी हैं लेकिन इसके साथ ही स्वयं को सक्षम सिद्ध करने की राह पर आगे बढ़ने के लिए नारी को अब स्वयं को एकजुट होना है।

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