उपकार का फ़ल !


आर. डी. भारद्वाज " नूरपुरी "
मोब. : 8750202220

बहुत समय पहले की बात है, स्कॉटलैंड में एक किसान रहता था, जिसका नाम था ह्यूज़ फ्लैमिंग । एक दिन जब वह अपने खेतों में काम निपटाकर, शाम को घर जाने की तैयारी कर रहा था, तो अचानक उसे किसी के चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें सुनाई पड़ी । उसने आवाज़ आने की दिशा में ध्यान लगाकर सुनने की कोशिश की तो पता चला कि एक बच्चा मदद के लिये चीख-पुकार कर रहा है । शाम का वक्त था, सूर्य अस्त हो रहा था और थोड़ा-थोड़ा अन्धेरा भी हो रहा था । ख़ैर, वह आवाज़ आने की दिशा में आगे बढ़ता गया। उसके खेतों के बाद थोड़ा दलदल का इलाका था और उसके बाद जंगल शुरू हो जाता था । दलदल के इलाके में एक ओर पहुँचकर उसने देखा कि एक 9-10 साल का बच्चा दलदल में बुरी तरह फंसा हुआ है और वह मदद के लिये चीख रहा था । वह लड़का बुरी तरह से रो रहा था और डरा हुआ भी था । फ्लैमिंग ने लड़के को देखकर उसे हिम्मत दी और कहा, "डरो नहीं, मैं तुम्हें बचाऊँगा ।” यह कहते हुए वह लड़के की तरफ दलदल में आगे बढ़ने लगा । लेकिन अभी वह थोड़ी ही दूर गया तो उसे एहसास हुआ कि दलदल तो बहुत गहरा और भयंकर है, अगर वह आगे बढ़ा तो शायद वह भी उस लड़के की तरह उसमें फंस जाएगा । लड़का भी उसे देखकर खुश हो गया कि आखिरकार उसे बचाने वाला कोई आ गया है और वह यथा सम्भव यत्न भी कर रहा है । लेकिन फ्लैमिंग ने वहीं रूक कर थोड़ी देर के लिये सोचा कि अपनी जान को खतरे में डाले बिना, लड़के को कैसे बचाया जा सकता है? फिर, जैसे कि उसे कोई युक्ति सूझ गई हो, वह उस लड़के से कहने लगा, '"देखो बेटा ! तुम डरना नहीं, रोना नहीं, घबराना नहीं । मैं तुझे बचाने के लिये कोई-न-कोई इंतज़ाम करके 5-7 मिनट में वापस आता हूँ ।”

फ्लैमिंग जल्दी-जल्दी वापिस अपने खेतों की ओर भागा । खेतों में उसने अपने जानवरों के लिये एक कच्चा मकान बना रखा था । उस मकान के एक तरफ उसका खेतीबाड़ी का संसाधन / सामान रखा हुआ था । अपने कचे मकान में पहुँच कर उसने चारों तरफ नज़र दौड़ाई, अचानक उसकी नज़र एक लम्बी रस्सी पर पड़ी । फ्लैमिंग ने तुरन्त रस्सी उठाई और वापिस दलदल में फंसे उस लड़के की तरफ दौड़कर गया और लड़के से कहने लगा, " देखो बेटा ! मैं यह रस्सी तुम्हारी तरफ फैंकता हूँ, तुम उसका दूसरा कोना पकड़ लेना, ठीक है?” लड़के ने "हाँ” में अपना सिर हिलाया । फ्लैमिंग ने फिर पूरे ज़ोर से रस्सी का दूसरा सिरा लड़के की ओर फैंका । लड़के ने किसान के कहे अनुसार रस्सी के दुसरे सिरे को कस कर पकड़ लिया । दूसरी ओर फ्लैमिंग उसे धीरे-धीरे खींचने लगा । ऐसे करते-करते 4-5 मिनट की कोशिश के बाद फ्लैमिंग ने लड़के को दलदल से बाहर निकाल लिया । अगर वह लड़के को बाहर न निकालता, तो न जाने लड़के का क्या हश्र होता, क्योंकि उस दलदल में कई प्रकार के खतरनाक जानवर भी थे और दलदल के पीछे तो जंगल था ही, जो कि जंगली जानवरों से भरा पड़ा था ।

दलदल से निकालने के बाद फ्लैमिंग उसे अपने खेत में ले गया और जाकर उसके और अपने कपड़े, जो कि दलदल वाले कीचड़ से बुरी तरह सने हुए थे; पानी से साफ़ किये । फिर फ्लैमिंग के पूछने पर उस लड़के ने बताया कि उसका नाम विन्सटन है और वह दिन में अपने 7-8 दोस्तों के साथ वहां घूमने के लिए आया था ताकि वह गाँव की सैर कर सके ओर जंगली जानवारों को उनके प्राकृतिक जीवन में रहते हुए भी देख सके । शाम होते-होते बाकी सभी उनके साथी तो निकलकर चले गये, लेकिन वह वहाँ पर दलदल वाले कीचड़ में फंस गया ।

बातें करते-करते फ्लैमिंग ने लड़के को उसके घर पहुँचाया और देर रात वह अपने घर पहुँचा । इस घटना के 10-12 दिन ही हुए थे कि एक दिन शाम को उसके घर के सामने एक गाड़ी आकर रूकी । फ्लैमिंग और उसकी पत्नी थोड़ा सकते में थे, क्योंकि उनके किसी भी रिश्तेदार व पारिवारिक मित्र के पास उस वक्त गाड़ी तो थी नहीं, तो उनके घर गाड़ी में कौन आ सकता है? वे दोनों ऐसे ही विचारों में उलझे हुए थे, कि दूसरे ही पल शानदार सा सूट-बूट पहने एक सेठ उनके घर में दाखिल हुआ । दोनों वहीं खड़े एक-दूसरे का नज़रों से ही निरीक्षण कर रहे थे कि, अचानक फ्लैमिंग ने सेठ से पूछा, "आप कौन हैं और आपको किससे मिलना है?“ संक्षिप्त ज़वाब में अतिथि ने उत्तर दिया - "फ्लैमिंग से” । "जी फरमाइए ! मैं ही फ्लैमिंग हूँ ।” इतनी देर में सेठ के पीछे-पीछे एक लड़का भी वहां आ गया, जिसे पहचान कर फ्लैमिंग उनके आने का उद्देश्य थोड़ा-थोड़ा समझ गया । फ्लैमिंग की पत्नी भी उनको देखकर थोड़ा चकित थी । अतिथि और उसके लड़को को बैठाने लायक उनके घर फर्नीचर तो था ही नहीं, बस आंगन में एक टूटी-फूटी चारपाई पड़ी थी, तो फ्लैमिंग की पत्नी ने उनको चारपाई पर बैठने के लिये कहा । ऐसे वे दोनों संकोच करते-करते बैठ गये । फ्लैमिंग की पत्नी उनके लिये पानी लेकर आई, तत्पश्चात् फ्लैमिंग ने उनसे अपने गरीबखाने पर पधारने का कारण पूछा ।

"दरअसल, मैंने आपको पहचाना नहीं, आप कौन है और आपको मुझसे क्या काम है?” अतिथि ने ज़वाब दिया, "मेरा नाम रैन्डोल्फ चर्चिल है । मैं एक बिज़नेस मैन हूँ । आपको याद होगा कि थोड़े दिन पहले आपने एक बच्चे की जान बचाई थी जो कि आपके खेतों के पास वाले जंगल से पहले वाले दलदल में फंस गया था । यह वही लड़का है - मेरा बेटा विन्सटन । आज मैं आपको इसके लिये धन्यवाद करने आया हूँ । आपने मेरे बेटे को बचाकर मेरे ऊपर बहुत बड़ा उपकार किया है।" फ्लैमिंग ने ज़वाब में बस इतना ही कहा, "जी, वो तो मेरा फर्ज़ था ।” ऐसे बातें करते-करते रैन्डोल्फ चर्चिल ने फ्लैमिंग के घर का मुआयना भी किया । उसने देखा कि किसान का घर बहुत खस्ता हाल में है, लेकिन उस किसान परिवार में सबर-संतोष की कमी नहीं है। फिर रैन्डोल्फ ने अपने कोट की जेब से नोटों की एक गड्डी निकाली और फ्लैमिंग की तरफ बढ़ाते हुए बोला "मेरी तरफ से यह आपके लिये एक छोटा-सा शुकराना है, स्वीकार करें।” पैसे देखकर फ्लैमिंग का मन गरीबी के बावज़ूद भी डोला नहीं; और उसने ज़वाब दिया, "आपका यह शुकराना मैं स्वीकार नहीं कर सकता । जो कुछ मैंने किया वह तो वक्त का तकाज़ा था, सो मैंने तो केवल हालात के अनुसार अपना फर्ज़ निभाया है ।”

रैन्डोल्फ चर्चिल ने बड़ी कोशिश की, कि फ्लैमिंग उसका तोहफा कबूल कर ले, लेकिन वो नहीं माना । उसे मन-ही-मन बहुत बुरा लग रहा था कि उस गरीब किसान को पैसे की कितनी सख्त ज़रूरत है, लेकिन फिर भी वह पैसे लेने के लिये तैयार नहीं हुआ । इतने में उस घर में एक 8-9 वर्ष का लड़का दाखिल हुआ, जो कि फ्लैमिंग की ही तरह फटे-पुराने कपड़ों में था और उसके पैरों में कोई जूता तक नहीं था । लड़के को देखकर सेठ ने पूछा, "यह आपका बेटा है, क्या?” किसान ने उत्तर दिया, "जी हां, यह मेरा बेटा अलेक्ज़ेण्डर है ।” फिर रैन्डोल्फ ने दोबारा पूछा, ”किस कक्षा में पढ़ता है ?” लड़का तो खामोश रहा, लेकिन फ्लैमिंग ने ज़वाब दिया, "जी मैं तो एक गरीब किसान हूँ, बेटे को स्कूल भेजने की हममें हिम्मत कहां है?” सेठ ने दूसरा सवाल किया, तो यह लड़का सारा दिन क्या करता है? फ्लैमिंग ने ज़वाब दिया, "अभी तो यह थोडा छोटा बच्चा है, इधर-उधर खेलता रहता है, जब 15-16 वर्ष का हो जाएगा, तो मेरे साथ खेतों के काम में हाथ बंटाएगा ।”

सुनकर वह अतिथि सेठ खड़ा हो गया फिर मन-ही-मन थोड़ा गम्भीर मुद्रा में सोचते हुए वह लड़के के पास गया और उसने लड़के के सिर पर हाथ फेरा, और अलेक्ज़ेण्डर से मुखातिब होकर कहने लगा, "इसके लिये मेरे पास एक सुझाव है, अगर आपको विश्वास हो, तो मैं इसे अपने पास ले चलता हूँ । मेरा लड़का, जिसकी आपने जान बचाई थी - विन्सटन, मैं इसे उसी के साथ स्कूल में दाखिल करवा दूँगा, इसे उच्च शिक्षा दिलवाऊँगा, ताकि इसकी ज़िन्दगी संवर सके और वह जिन्दगी में एक अच्छा और कामयाब आदमी बन सके । जिंदगी की आवश्यक और माली जरूरते पूरी करने के लिए इसको तरसना न पड़े और किसी के आगे हाथ न फेलाना पड़े ! आपसे यही निवेदन है कि आप ना मत कहना ।“ सेठ की बातें सुनकर फ्लैमिंग व उसकी पत्नी एक-दूसरे की ओर देखने लग गए । फिर उन्होंने उस सेठ के ज्यादा आग्रह करने पर अपने लड़के को उसके साथ भेजने हेतु तैयार हो गए ।

इस तरह रैन्डोल्फ चर्चिल, अलेक्ज़ेण्डर को अपने साथ ले गया, उसे मन लगाकर पढ़ने के लिये प्रेरित किया। ऐसे करते-करते उस लड़के ने सेंट मेरीज़ हॉस्पिटल मेडिकल स्कूल से उच्च शिक्षा प्राप्त की और वह धीरे - २ एक उच्चकोटि के वैज्ञानिक बन गये, जिनको आज हम सर अलेक्ज़ेण्डर फ्लैमिंग (1881-1955) के नाम से जानते हैं । यह वही वैज्ञानिक अलेक्ज़ेण्डर फ्लैमिंग है जिसने कि 1928 में पेनिसिलिन मेडिसिन की खोज की थी और इसके लिये 1945 में उनको नोबल पुरस्कार से नवाजा गया था । बहुत वर्ष बाद जब वह लड़का, जिसे फ्लैमिंग ने बचाया था, बड़ा होने पर वह एक बार 1943 में बहुत बुरी तरह बीमार पड़ गया, दरअसल उसे निमोनिया हो गया था और जिस दवाई के कारण उसकी जान बच पाई थी, वह पेनिसिलिन ही थी, जिसकी खोज 1928 में अलेक्ज़ेण्डर फ्लैमिंग ने की थी और दोस्तो ! विन्सटन चर्चिल (1874-1965) वही आदमी है, जो कि बड़ा होकर इंग्लैण्ड की कन्सर्वेटिव पार्टी का उच्चकोटी का नेता बन गया था। वह एक अच्छा लेखक भी रहा है । दूसरे विश्व युद्ध के समह (1939-1945) के दौरान वह इंग्लैण्ड का प्रधानमंत्री था । एक बार फिर वह (1951-55) की अवधि के लिये वहां का प्रधानमंत्री भी रहा । यही नहीं, 1953 में साहित्य में बेहतरीन योगदान के लिये नोबल पुरस्कार से भी उसे नवाज़ा गया था ।

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