दशहरा पर्व


डॉ. उर्मिला पोरवाल सेठिया
हिंदी विभागाध्यक्षा बेंगलुरु

श्राप से सर्वनाश

रावण रामायण का एक केंद्रीय प्रतिचरित्र है। रावण लंका का राजा था। वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था, जिसके कारण उसका नाम दशानन (दश = दस + आनन = मुख) भी था। किसी भी कृति के लिये नायक के साथ ही सशक्त खलनायक का होना अति आवश्यक है। रामकथा में रावण ऐसा पात्र है, जो राम के उज्ज्वल चरित्र को उभारने का काम करता है। पद्मपुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्मपुराण, रामायण, महाभारत, आनन्द रामायण, दशावतारचरित आदि ग्रंथों में रावण का उल्लेख हुआ है। रावण के उदय के विषय में भिन्न-भिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न प्रकार के उल्लेख मिलते हैं।

वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण महाकाव्य की उम्र में, रावण लंकापुरी का सबसे शक्तिशाली राजा था वाल्मीकि रामायण के ही अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि का पौत्र था अर्थात् उनके पुत्र विश्रवा का पुत्र था। विश्वश्रवा की वरवर्णिनी और कैकसी नामक दो पत्नियां थी। वरवर्णिनी के कुबेर को जन्म देने पर सौतिया डाहवश कैकसी ने कुबेला (अशुभ समय - कु-बेला) में गर्भ धारण किया। इसी कारण से उसके गर्भ से रावण तथा कुम्भकर्ण जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षस उत्पन्न हुए।

धार्मिक ग्रंथों की मान्यतानुसार हजार बुराइयों के बावजूद रावण में अनेक गुण भी थे। वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों में रावण को बहुत महत्त्व दिया गया है। राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्त्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते हैं।

सारस्वत ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र और विश्रवा का पुत्र रावण एक परम शिव भक्त, उद्भट राजनीतिज्ञ , महापराक्रमी योद्धा , अत्यन्त बलशाली , शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता ,प्रकान्ड विद्वान पंडित एवं महाज्ञानी था। रावण के शासन काल में लंका का वैभव अपने चरम पर था इसलिये उसकी लंकानगरी को सोने की लंका अथवा सोने की नगरी भी कहा जाता है। रावण बहुत ही पराक्रमी योद्धा था। उसने अपने जीवन में अनेक युद्ध किए। धर्म ग्रंथों के अनुसार उसने अपने जीवन के कई युद्ध तो अकेले ही जीत लिए थे।

विचारणीय प्रश्न यह है कि इतना पराक्रमी होने के बाद भी उसका सर्वनाश कैसे हो गया?

रावण के अंत का कारण श्रीराम की शक्ति तो थी ही। साथ ही, उन लोगों का श्राप भी था, जिनका रावण ने कभी अहित किया था। धर्म ग्रंथों (वाल्मीकि रामायण) के अनुसार रावण को अपने जीवनकाल में मुख्यतः 6 लोगों से श्राप मिला था। यही श्राप उसके सर्वनाश का कारण बने और उसके वंश का समूल नाश हो गया।

प्रथम प्रसंग
रघुवंश (भगवान राम के वंश में) में एक परम प्रतापी राजा हुए थे, जिनका नाम अनरण्य था। जब रावण विश्वविजय करने निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में राजा अनरण्य की मृत्यु हो गई, लेकिन मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक के हाथों ही तेरी मृत्यु होगी।

यह श्राप सत्य सिद्ध हुआ और रघुवंश में दशरथ पुत्र राम हुए और उन्हीं के कर कमलों से रावण का उद्धार हुआ।

द्वितीय प्रसंग

एक बार रावण भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।

यह श्राप भी सत्य हुआ और श्री राम को वानर सेना का सहयोग मिला और उन्हीं के सहयोग से रामसेतु का निर्माण हुआ सीता माता की खोज हुई और युद्ध में भी महत्वपूर्ण भूमिका वानरों द्वारा निभाई गई।

तृतीय प्रसंग
रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपनी बातों में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया। उस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासनायुक्त मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई। अत: तुम भी स्त्री की वासना के कारण मारे जाओगे।

यह श्राप भी सत्य हुआ और सीता माता का हरण करना ही रावण के जीवन की सबसे बड़ी भूल साबित हुई।

चतुर्थ प्रसंग
एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था। तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, जो भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी।

कहीं ना कहीं माया द्वारा दिए गए श्राप में ही तपस्विनी द्वारा दिया गया श्राप भी सत्य सिद्ध हो गया।

पंचम प्रसंग
विश्व विजय करने के लिए जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे वहां रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने उसे पकड़ लिया। तब उस अप्सरा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं। लेकिन रावण नहीं माना और उसने रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसको स्पर्श करेगा तो रावण का मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएगा।

यही कारण रहा कि रावण ने इच्छा के विरुद्ध माता सीता का हरण अवश्य कर लिया परंतु वह उनकी इच्छा के विरुद्ध होने स्पर्श नहीं कर पाया।

षष्ठ प्रसंग
रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।

यह तो सर्वविदित है कि शूर्पनखा ही है जिसने रावण को सीता माता की खबर दी और रावण के मन में उनके प्रति दूर्विचार संचारित किए और परिणाम स्वरुप रावण का अंत हुआ।

इस प्रकार रावण की कथा को जानकर उसके जीवन के प्रत्येक पक्ष को पढ़कर निष्कर्ष रूप में यह तो कहा जा सकता है कि व्यक्ति के गुणों पर उसका एक अवगुण भारी पड़ सकता है व्यक्ति चाहे कितना ही प्रकांड पंडित हो यदि एक दूर्विचार उसके मन में संचारित हो जाए तो उसका विनाश निश्चित है। आज वैचारिक रामायण कलयुग में निर्मित है प्रत्येक व्यक्ति के अंदर वैचारिक राम और वैचारिक रावण निवास करते हैं इसलिए आज भी प्रतीकात्मक रुप से रावण दहन की प्रथा विद्यमान है।

विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं

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