फिल्म ओके जानू


प्रेमबाबू शर्मा

महानगरों में बढते लिव-इन रिलेशनशिप पर अनेक फिल्में बन चुकी है,हांलाकि भारत में इस रिश्तें को अच्छी निगाहों से नहीं देखा जाता है। निर्देशक मणिरत्नम के शिष्य, शाद अली ने एक बार फिर से इसी विषय को ‘ओके जानू’ के रूप में किया है। ‘ओके जानू’ मणिरत्नम की सफल फिल्म ‘ओके कनमनी’ का हिंदी रीमेक है। यह ठीक वैसा ही है जैसा आम तौर पर दक्षिण की किसी फिल्म का हिंदी रीमेक हुआ करता है। मणिरत्नम के नाम के साथ में निर्देशक शाद अली का नाम जुड़ते ही ‘साथिया’ की याद भी गुदगुदा जाती है। ओके जानू फिल्मकार और दर्शक के बीच इस रोमांस के पनपने से पहले ही सांस छोड़ देती है।

फिल्म की कहानी वही है जो सैकड़ों बार दोहराई जा चुकी है ,लेकिन फिर भी कोई इससे थकता नजर नहीं आता। एक बार फिर एक लड़की और एक लड़का किसी नए शहर में मिलते हैं। दोनों में प्यार होता है। करियर की जद्दोजहद चलती है। यहां पर एक पराए देश जाने का सपना भी साथ-साथ चलता है। सारे आधुनिक जोड़ों की तरह शादी न करने की कसमें खाई जाती हैं जो हमारी ज्यादातर फिल्मों की तरह मंडप में ही टूटती है. इस फिल्म में अलग इतना है कि प्यार अलग-अलग मोड़ों से गुजरने की बजाय अपने-आप से ही जूझता नजर आता है।.

ओके जानू’ में लेखक मणिरत्नम ने दर्शाने की कोशिश की है कि कोई भी रिश्ता हो उसमें प्यार जरूरी है। शारीरिक आकर्षण भी ज्यादा देर तक बांध कर नहीं रख सकता। फिल्म में दो जोड़ियां हैं। आदि (आदित्य रॉय कपूर) और तारा (श्रद्धा कपूर) युवा हैं, शादी को मूर्खता समझते हैं। दूसरी जोड़ी गोपी (नसीरुद्दीन शाह) और उनकी पत्नी चारू (लीला सैमसन) की है। दोनों वृद्ध हैं। शादी को लगभग पचास बरस होने आए। शादी के इतने वर्ष बाद भी दोनों का निरूस्वार्थ प्रेम देखते ही बनता है।

गोपी के यहां आदि और तारा पेइंग गेस्ट के रूप में रहते हैं। इन दोनों जोड़ियों के जरिये तुलना की गई है। एक तरफ गोपी और उनकी पत्नी हैं जिनमें प्यार की लौ वैसी ही टिमटिमा रही है जैसी वर्षों पूर्व थी। दूसरी ओर आदि और तारा हैं, जो प्यार और शादी को आउट ऑफ फैशन मानते हैं और करियर से बढ़कर उनके लिए कुछ नहीं है। फिल्म के आखिर में दर्शाया गया है कि प्यार कभी आउट ऑफ फैशन नहीं हो सकता है।

फिल्म की कहानी में ज्यादा उतार-चढ़ाव या घुमाव-फिराव नहीं है। बहुत छोटी कहानी है। कहानी में आगे क्या होने वाला है यह भी अंदाजा लगना मुश्किल नहीं है। इसके बावजूद फिल्म बांध कर रखती है इसके प्रस्तुति के कारण। निर्देशक शाद अली ने आदि और तारा के रोमांस को ताजगी के साथ प्रस्तुत किया है। इस रोमांस के बूते पर ही वे फिल्म को शानदार तरीके से इंटरवल तक खींच लाए। आदि और तारा के रोमांस के लिए उन्होंने बेहतरीन सीन रचे हैं।

इंटरवल के बाद फिल्म थोड़ी लड़खड़ाती है। दोहराव का शिकार हो जाती है। कुछ अनावश्यक दृश्य नजर आते हैं, लेकिन बोर नहीं करती। कुछ ऐसे दृश्य आते हैं जो फिल्म को संभाल लेते हैं। फिल्म के संवाद, एआर रहमान-गुलजार के गीत-संगीत की जुगलबंदी, मुंबई के खूबसूरत लोकेशन्स, आदित्य रॉय कपूर और श्रद्धा कपूर की केमिस्ट्री मनोरंजन के ग्राफ को लगातार ऊंचा रखने में मदद। जबकि इससे पहले दोनों ‘आशिकी 2’ में साथ काम किया था

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