हमें हीरो नही बनना, चरित्र ही निभाना है -हर्षित डिमरी


-प्रेमबाबू शर्मा

हमें हीरो नही बनना, चरित्र ही निभाना और निभाते रहगंे यह कहना है, अभिनेता हर्षित डिमरी का यह बात उन्होंने प्रेमबाबू शर्मा से एक मुलाकात में कहीं।उनका कहना था कि टीवी और फिल्मों के जरिये हमने बहुत सी जिंदगी का जिया है जो हमारे लिए यादगार है। हर्षित इन दिनों दूरदर्शन पर प्रसारित शो ‘दिल आशना है‘ गौरव मिश्रा के किरदार का निभा रहे है। जबकि इससे पूर्व में ‘लौट आओ तृषा‘, ‘एक बूंद इश्क‘, ‘साथ निभाना साथिया‘ और ‘इश्क का रंग सफेद‘ जैसे अनेक शो का हिस्सा बन चुके हंै। अपने नये शो पर उनका क्या कहना है,जानते है,उनकी ही जुबानीः

‘दिल आशना है‘ नाम तो काफी रोमांटिक लग रहा है?
हाँ, ‘दिल आशना है‘ की कहानी एकदम मजेदार है। इसके रेगुलर दर्शक एक भी एपीसोड मिस नहीं करते। एक हिन्दू और एक मुस्लिम फैमिली की कहानी है। आप देखते ही होंगे।

- आप तो लड़ते-झगड़ते रहते हैं इसमें।
- दरअसल मेरा जो किरदार है गौरव मिश्रा, वह जरा लालची किस्म का लड़का हेे उसके चाचा-चाची की कोई संतान नहीं है। गौरव को डर है कि उसके चाचा-चाची अपनी जमीन जायजाद किसी और के नाम न कर दें। बस, डर लगा रहता है इसलिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाता हैं। 

- सेट पर तालमेल बिठाने में दिक्कत होती होगी?
- ऐसी बात नहीं है। सेट पर माहौल एकदम खुशनुमा बना रहता है। हमारे डाॅयरेक्टर जयदेव-चक्रवर्ती जी अपने आर्टिस्ट के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं। मैं उनके साथ अभिनय की बारीकियां सीख रहा हूँ। वह मुझे समझाते रहते है कि अभी अपना बेस मजबूत बना लो तब जाकर आगे उम्दा अदाकारी कर पाओगे। सीरियल में जाने माने एक्टर पप्पू पाॅलिस्टर जी मेरे चाचा के रोल में हैं ओर सीरियल के राइटर भी वही हेै । मैं खुशनसीब हूँ कि उनके साथ काम करने का चांस मिला।

- आप तो दूसरे चैनल्स में अच्छा काम कर रहे थे, फिर दूरदर्शन में आ गए?
- सर, मैं एक एक्टर हूँ। यहां एक्टिंग करने के लिए आया हूँ। मुझे पैसे अच्छे मिलने चाहिए और मेरा रोल जरा ढंग का होना चाहिए। मैं सबके साथ काम करने के लिए तैयार हूँ।

- एक्टर बनने का ख्याल कैसे आया?
- मैं शुरू से एक्टिंग ही कर रहा हूँ। बचपन में गल्ली मोहल्ले की रामलीलाओं में बंदर बनता था। स्कूल में होने वाले कल्चरल प्रोग्राम्स में, मैं पार्टिसपेट करता था। काॅलेज में स्टूडेंस और टीचर्स ने मुझे कल्चरल सोसायटी का जनरल सेकेट्री बना दिया। फिर तो पक्का हो गया कि मैं जीवन में, अगर कुछ कर सकता हूँ तो सिर्फ एक्टिंग।

- बिना किसी गाॅडफादर के इंडस्ट्री में एंट्री करना मुश्किल रहा होगा?
- मैं जब दिल्ली से मुम्बई आया तो काफी डरा हुआ था। एक अंजान शहर, जहां कोई भी अपना नहीं। गाॅड फादर तो दूर की बात, शुरूआत में तो रास्ता दिखाने वाला भी नहीं मिला यहां। हाँ, बाद में कुछ अच्छे लोग मिल गए जिन्होंने काम दिलाने में मेरी मदद की। प्राॅडक्शन हाउसों में जा-जाकर आॅडिशन दे रहा था। एक दिन ‘साथ निभाना साथिया‘ से काॅल आ गई। हालांकि इसमें मेरा रोल छोटा ही था मगर टी0वी0 इंडस्ट्री में एंट्री हो गई। अब तो लगभग सभी चैनल्स के साथ काम कर चुका हूँ।

- आप तो पत्रकार बनना चाहते थे फिर सोच कैसे बदल गई?
- मैं नहीं बनना चाहता था, बल्कि मेरे पेरेंटस चाहते थे कि ऐसा हो। बचपन में मुझे सिखाया जाता था कि अखबार पढ़ो और टी0बी0 पर न्यूज देखो। आगे चलकर इन्हीं सब बातों से दो-चार होना पड़ेगा। एक टाइम तो ऐसा था जब मुझे सारे नेता और मंत्रियों के नाम याद हो गए थे। काॅलेज में पढ़ाई के दौरान अहसास हुआ कि मुझे रिपोर्टिंग में नहीं, एक्टिंग में कैरियर बनाना चाहिए।

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