दिल्ली सरकार की नीतियों के चलते कॉन्ट्रेक्ट कर्मियों में रोष।

सागर शर्मा

ठेके पर भर्ती किए गए कर्मचारियों को आधार बना कर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी अब जैसे इन कर्मचारियों को भूल ही गई है। जिसके चलते लाखों कर्मचारी ठगा सा महसूस कर रहे हैं। ताजा मामला शिक्षा विभाग में कार्यरत लगभग 1100 कर्मचारियों से जुड़ा है। जिनकी नियुक्ति विवादित आई टी कपंनी आई सी एस आई एल द्वारा अनुबंध आधार पर की गई थी जिसकी मियाद 30 जून को समाप्त हो गई। आई टी असिस्टेंट और डाटा एंट्री ऑपरेटर के पद पर भर्ती किए गए ये कर्मचारी दिल्ली के सरकारी स्कूलों में ऑनलाइन मॉड्यूल पर सभी प्रकार के ऑनलाइन काम को अप टू डेट रखने जैसे अध्यापको की ऑनलाइन हाजरी,ऑनलाइन दाखिले, ट्रांसफर पोस्टिंग और अन्य सभी कार्य जो प्रधानाचार्य द्वारा दिए जाते है के लिए भर्ती किया था। 1 जुलाई 2014 से यह अनुबंध 2 साल के लिए आई सी एस आई एल कपंनी को दिया गया जिसकी मियाद 30 जून को समाप्त हो गई। जिसके बाद सभी स्कूलों में प्रिंसिपल ने इन कर्मचारियों को काम पर आने से मना कर दिया। शिक्षा निदेशालय की ओर से भी किसी प्रकार का नोटिफिकेशन न होने का हवाला देकर इन कर्मचारियों को स्कूल से बाहर रहने का मौखिक आदेश जिलावार विद्यालयों के प्रधानाचायों ने दे दिया। जिसके बाद ये सभी कर्मी मानसिक अवसाद से घिर गए हैं और इन्हें समझ नहीं आ रहा है कि अब क्या किया जाए। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री के पूर्व प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार से संबंधित मामले में गिरफ्तार किए गए आई सी एस आई एल के एम डी और पूर्व एमडी के कारण इन कर्मचारियों को मई महीने के बाद अब तक वेतन नहीं दिया गया है।

इन कर्मचारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आईसीएसआईएल में संपर्क करने पर ना तो वेतन से संबंधित और ना ही कोन्ट्रक्ट से संबंधित कोई जवाब दिया गया। कंपनी ने शिक्षा विभाग में संपर्क करने का सुझाव देकर पल्ला झाड़ लिया। गौरतलब है कि ये वही कंपनी है जिसको फायदा देने के आरोप में पूर्व प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार जेल की हवा खा रहे हैं।

लेकिन इस सब के बीच बेहद दुखी ये कर्मचारी आज सरकार से केवल एक ही सवाल कर रहे हैं कि आखिर उनका कसूर क्या है जो इनके साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है। एक तरफ सरकार सरकारी स्कूलों में रिटायर्ड कर्मचारियो को एस्टेट मैनेजर और मिनिस्ट्रियल स्टाफ के पद पर भर्ती कर रही है। दूसरी तरफ जिन कर्मचारियों ने अपनी युवा अवस्था सरकारी विभागों को भेंट चढ़ा दी उनके साथ ऐसा सौतेला व्यहवहार क्यों ?

इन कर्मचारियों का आरोप है कि सरकार का ये सौतेलापन संवेदनहीनता की पराकष्ठा को ज़ाहिर करता है।मिनिस्टीरियल स्टाफ में नियुक्त रिटायर्ड कर्मचारी को 25000 के मासिक वेतन पर नियुक्त करने वाली दिल्ली सरकार इन आई टी असिस्टेंट और डाटा एंट्री ऑपरेटर को लेबर रेट पर भर्ती कर रही है जिन्हें महज 12000 वेतन दिया जा रहा है जिसमे से ई पी एफ और ई एस आई के नाम पर कटौती की जाती है जिसके बाद इन्हें महज 10900 ही मिल पाते हैं। ऐसे में क्या घर खर्च चलेगा क्या ये अपने बच्चों को पढ़ाएंगे। ख़ास बात यह है कि रिटायर्ड कर्मचारी के लिए भर्ती की योग्यता आईटी असिस्टेंट और डाटा एंट्री ऑपरेटर से कम ही है।

जहाँ तक इन कर्मचारियों के काम का सवाल है इनका कहना है क़ि स्कूल में लगभग 80 फीसदी काम का भार इनके ऊपर रहता है जिसके एवज में इनको तनख्वाह भी ठीक से नहीं दी जाती। एक तरफ दिल्ली सरकार के मुखिया का कहना है कि दिल्ली सरकार और उनके मंत्री आम आदमी के लिए दिन रात योजनाएं बना रहे हैं और उनकी बेहतरी के लिए प्रयत्न कर रहे हैं लेकिन इन कर्मचारियों के मामले में ये दावे खोखले ही साबित हो रहे हैं । युवा तबके को इस तरह सरकारों द्वारा अवसाद में धकेलना बेहद शर्मिंदगी की बात है।

स्कूलो में बढ़ते काम के बोझ और वेतन की दिक्कतों के चलते हताश हो चुके ये कर्मचारी अब केवल खुद को कोसने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे हैं। एम बी ए , बी बी ए , बीटेक और कई अन्य डिग्री होल्डर भी इन कर्मचारियों में शामिल हैं । हमारी विशेष टीम ने इनमे से काफी कर्मचारियों से बात की जिसके बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे कि सरकारें और पार्टी केवल ऐसे लोगों को भीड़ और वोट बैंक की तरह आंकते हैं ।

ऐसे में इन कर्मचारियों की मांग है कि इनके साथ मानवीय व्यवहार किया जाए । जब एक रिटायर्ड कर्मचारी को सम्मानजनक वेतन पर नियुक्ति दी जा सकती है तो इनको क्यों नहीं ? आई सी एस आई एल जैसी थर्ड पार्टी को बीच से हटा कर सरकार विभाग को इनको सीधे अनुबंधित करने के आदेश दे साथ ही समान वेतन समान काम के आधार पर मेहनताना दिया जाए ।

जब एक सरकारी सृजित पद पर एक सरकारी कर्मचारी मौज मस्ती करके बिना काम के ही मोटी रकम वेतन के नाम पर पा लेता है तो उसी पद पर रहते हुए कम से कम बाकी भत्तों को छोड़ कर वेतन पाने का अधिकार तो इन कर्मचारियों को मिलना ही उचाहिए जबकि जी तोड़ मेहनत करके ये अपनी 100% सेवा सरकार को दे रहे हैं ।

मई माह के बाद वेतन का इंतज़ार कर रहे ये कर्मचारी ना तो नियमित करने की मांग कर रहे हैं ना ही ये कोई बड़ी मांग रख रहे हैं । समान वेतन समान काम हर कामगार का हक़ है जिस पर सरकार को विचार करना चाहिए लेकिन ऐसे ही हज़ारों वायदों को लेकर सत्ता में आए अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी शायद ऐसे मुद्दों को भूल गए हैं या फिर उनकी मंशा इनके लिए कुछ करने की है ही नहीं ।

बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि क्या राजनैतिक पृष्ठभूमि के लोग केवल चुनावी मौसम में ही वायदों को याद करते हैं ? अगर अरविन्द केजरीवाल का भी यही उद्देश्य है तो क्या इन कर्मचारियों को भी आगामी विधानसभा चुनाव का इंतज़ार करना होगा ? ये सवाल इसलिए भी अहम् हो जाता है क्योंकि सरकार बनने के बाद से लेकर अब तक इस विषय पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है । अब देखना होगा कि कब तक इन कर्मचारियों की मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना जारी रहती है । विधायकों के लिए ढाई लाख की सेलेरी के लिए एलजी और प्रधानमंत्री तक को लपेटने वाले मुख्यमंत्री इनके मामले में क्या करते हैं ।

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