| सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा हम बुलबुलें हैं इसकी,ये गुलसिताँ हमारा गुलसिताँ :फूलों का बाग़ | लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी ज़िन्दगी शम्मा की सूरत हो खुदाया मेरी दूर दुनिया का मिरे दम से अँधेरा हो जाए हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाए शम्मा:शमा , सूरत:शक्ल /जैसी |
| सितारों से आगे जहाँ और भी हैं अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं | भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी बड़ा बेअदब हूँ , सज़ा चाहता हूँ |
| तेरे आज़ाद बन्दों की न ये दुनिया,न वो दुनिया यहाँ मरने की पाबन्दी , वहाँ जीने की पाबन्दी | नशा पिला के गिराना तो सब को आता है मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी |
| मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं तन की दौलत छाँव है, आता है धन ,जाता है धन | ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले ख़ुदा बन्दे से खुद पूछे , बता तेरी रज़ा क्या है रज़ा: मर्ज़ी |
| माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं तू मेरा शौक़ देख , मिरा इन्तिज़ार देख दीद: देखना | तिरे इश्क़ की इन्तिहाँ चाहता हूँ ! मिरी सादगी देख,क्या चाहता हूँ ? |
| दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ, या रब क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो लुत्फ़ : मज़ा , अंजुमन :महफ़िल | कभी हमसे ,कभी ग़ैरों से शनासाई है बात कहने की नहीं,तू भी तो हरजाई है शनासाई: मिलना-जुलना/जान- पहचान |
| नशेमन पर नशेमन इस क़दर तामीर करता जा कि बिजली गिरते गिरते,आप खुद बेज़ार हो जाये नशेमन:घर,तामीर:बनाना/निर्माण,बेज़ार:तंग आना | तू शाहीं है ,परवाज़ है काम तेरा तिरे सामने आसमाँ और भी हैं शाहीं :बाज़ ,परवाज़ : उड़ना |
| दिल से जो बात निकलती है,असर रखती है पर नहीं ताक़त-ए -परवाज़ , मगर रखती है | अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल लेकिन, कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे पासबान : गार्ड |
| गुज़र जा अक़्ल से आगे कि ये नूर चराग़-ए -राह है, मंज़िल नहीं है नूर : प्रकाश ,राह :पथ /रास्ता | जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी उस खेत के हर ख़ोशा- ए-गन्दुम को जल दो दहक़ाँ: किसान , मयस्सर:हासिल , ख़ोशा- ए-गन्दुम: गेहूं की बालियाँ/दाने |
| अनोखी वज़अ है, सारे ज़माने से निराले हैं ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या रब रहने वाले हैं वज़अ': अदा | अपने मन में डूब कर, पा जा सुराग़-ए- ज़िन्दगी तू अगर मेरा नहीं बनता ,न बन ,अपना तो बन सुराग़ : राज़ / रहस्य |
| अमल से ज़िन्दगी बनती है ,जन्नत भी,जहन्नम भी ये ख़ाकी अपनी फितरत में, न नूरी है, न नारी है अमल: काम , जहन्नम: नर्क , ख़ाकी:मानव , नूरी:प्रकाशमय , नारी : अग्निमय | महीने वस्ल के, घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं मगर घड़ियाँ जुदाई की, गुज़रती हैं महीनों में वस्ल:मिलन |
| बातिल से दबने वाले,ऐ आसमाँ,नहीं हम सौ बार कर चूका है तू इम्तिहाँ हमारा बातिल: बुराई/बुरी प्रवृत्ति | मुझे रोके गा तू ऐ नाख़ुदा ग़र्क़ होने से कि जिनको डूबना है,डूब जाते हैं सफ़ीनों में नाख़ुदा: मांझी , सफ़ीना:नाव |
Labels: Ghazal, Inspiration, RAIS SIDDIQUI