चलो ! फिल्टर लगवाएँ !


आर.डी. भारद्वाज "नूरपुरी"

एक दिन हम कुछ दोस्त - मित्र पार्क में बैठे समाज में चल रही अनेक प्रकार की घटनाओं पर चर्चा कर रहे थे, अचानक वार्तालाप का विषय दिन बदिन बढ़ते जा रहे अपराधों पर आ पहुँचा । एक बात पर तो लगभग सभी मित्र सहमत थे कि आप किसी भी भाषा का या फिर किसी भी प्रान्त का समाचार पत्र उठा कर देख लें, उसमें महिलाओं पर होने वाले अनेक अपराध, खास तौर पर , 8 - 10 बलात्कार के मामले तो अवश्य ही रिपोर्ट होते हैं (जबकि असल में होने वाले ऐसे अपराधों की संख्या तो २/३ गुना ज्यादा होती है ) और इसका कारण है - समाज में पनप रही गलत किस्म की धारणाएँ - जो कि आजकल के नौजवान फिल्में और टीवी पर चल रहे नाना प्रकार के सीरियल्स देखकर अपना लेते हैं , जिनके कारण मानवीय कद्रों कीमतों में इतनी गिरावट आ गई है, क्योंकि बच्चे यही सोचते हैं कि हमारे असली संस्कार वही तो है जो इन टीवी धारावाहिकों में दिखाये जाते हैं । क्योंकि टीवी धारावाहिकों के लिए कोई सेंसर बोर्ड तो है नहीं, सो इसके अभाव के चलते जो बहुत से अन्तरंग दृश्य / हिंसात्मक दृश्य जो २०-२५ वर्ष पहले केवल फिल्मों में ही दिखाए जाते थे, वो अब बड़े ही सहज तरीके से इन धारावाहिकों में भी दिखाए जा रहे हैं । और युवा पीढ़ी इन गलत किस्म के दृश्यों से प्रभावित / उत्साहित या फ़िर गुमराह होकर अपने आसपास की लड़कियों या महिलाओं पर आजमाने पर आमादा हो जाते हैं ।

इतने में वहाँ पर बैठे एक सज्जन कहने लगे, "मैंने तो देखा है, समझा है कि प्रत्येक मनुष्य जिन्दगी में कभी न कभी कोई पाप या फिर गलत हरकत करता ही है या फिर ऐसी हरकत जो कि नहीं होनी चाहिए , वह हमसे जाने अनजाने में हो ही जाती है । इस लिए मैं तो पिछले वर्ष अक्तूबर में गंगा स्नान करने हरिद्वार गया था और वहाँ जाकर मैंने अपने अगले पिछले सारे पाप धो लिए ! और इसके बाद अब तो मैं तो पाक साफ़ हो गया हूँ ……… , और मुझे अब कोई चिन्ता नहीं हैं कि मुझे अपने पुराने बुरे कर्मोँ की सज़ा मिलने वाली है । उन सज्जन की बात मुझे तो कोई खास जँची नहीं, लेकिन यह मेरा ही नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों का अडिग विश्वास है कि हरिद्वार या फिर किसी और तीर्थ स्थान पर जाकर आप वर्ष में एक दो बार गंगा स्नान कर लेते हैं, तो आपके पिछले तमाम पाप कर्म गंगा के पवित्र जल में धुल जाते हैं और आगे के लिए कर्मों की फैरिस्त बिलकुल साफ़ हो जाती है । उस वक़्त वहाँ पार्क में बैठे ज्यादातर लोग इस बात पर लगभग सहमत थे ।

मैंने थोड़ा मज़ा लेने के इरादे से उनसे पूछा, "अगर आपने सचमुच अपने सारे बुरे कर्म गंगा में स्नान करके धो लिए हैं तो बेचारी गंगा तो खामखाह ही मैली हो गई । इसमें बेचारी गंगा का क्या दोष था जोकि किसी दूसरे की वजह से गन्दी हो गई।" इस पर वह सज्जन फिर बड़ी चतुराई से अपनी सफ़ाई देने लगे कि गंगा तो मेरे वहाँ नहाने से पहले भी मैली ही थी, आप खुद ही वहाँ जाकर देख लें - गंगा का पानी हरिद्वार और ऋषिकेश में कितना मटमैला है । मैंने उन सज्जन को समझाने की कोशिश की - " देखिए ! गंगा हमारे देश की सबसे बड़ी नदी है जो कि हिमालय पर्वत पर गंगोत्री नाम के ग्लेशियर से शुरू होती हुई कई राज्यों में से बहती हुई लगभग २५०० किलोमीटर का सफ़र तय करके बंगलादेश में प्रवेश करती है और फिर बंगाल की खाड़ी में से होती हुई समुंदर में समा जाती है, शुरूआत में इसका पानी इतना शुद्ध,पवित्र और शीतल होता है कि आप सीधे वहाँ से गिलास भरकर बिना किसी संकोच या गलत फ़हमी से पी सकते हो और आपको उससे किसी भी किस्म का कोई नुकसान नहीं होगा । लेकिन वह सज्जन अपनी बात पर अडिग रहते हुए कहने लगे, "भाई साहब ! यह केवल कहने और सुनने की बातें हैं, असल में गंगा तो कई दशकों से ऐसी ही मैली थी, मैली है और मैली ही रहेगी । आपने भी अख़बारों में पड़ा होगा कि सरकार ने समय - २ पर ना जाने कितनी बार गंगा को साफ़ करने के लिए कितने हजार कऱोड़ रूपए खर्च कर दिए , लेकिन गंगा फिर भी वैसी की वैसी ही है । और अब फिर हमारे तुम्हारे जैसे लाखों टैक्स चुकाने वाले लोगों के धन से फिर से सरकार ने करोड़ो रूपए की योजना बनाई है, लेकिन देख लेना, इस सरकार के पाँच वर्ष पूरे होने के बाद भी गंगा वैसी की वैसी ही रहेगी ! क्योंकि न तो इस परियोजना से जुडे हुए अधिकारियों और मन्त्रियों की साफ़ नीयत से गंगा को साफ़ करने की मन्शा होती है और ना ही इस पर मन्जूर की गई पूरी धन राशि खर्च की जाती है । मेरी बात पत्थर पर लकीर जैसी ही है - देख लेना - हमारे देश में न तो गंगा पवित्र होगी और न ही महिलाओं पर होने वाले अपराध कम होंगे । इतना कहते हुए वह सज्जन तो वहाँ से चल दिए, लेकिन कितनी देर से हमारी बातें ध्यान से, मगर खामोशी से सुनने वाले एक बुजुर्ग साथी - किरपा सागर जी ने कहा, "मैं हरिद्वार, इलाहाबाद, ऋषिकेश, बनारस या फिर किसी और तीर्थ स्थान की लम्बी यात्रा करूँगा और पता लगाकर ही रहूँगा कि आखिर गंगा इतनी मैली क्यों हैं और इसका महिलाओं पर होने वाले ना जाने कितने किस्म के अपराधों से क्या सम्बन्ध है ?"

थोड़े ही दिनों बाद वह जिज्ञासु महात्मा - किरपा सागर जी बनारस गए और वहाँ जाकर उन्होंने एक पहुँचे हुए ऋषि मुनि से भेंट की। उन ऋषि मुनि ने लम्बी बातचीत के दौरान किरपा सागर को बताया, "मैंने बहुत वर्ष पहले इसी विषय पर खोजबीन करने के लिए कई दिन गंगा के किनारे तपस्या की थी । बीस दिन तक मैं अन्न और जल का त्याग करके लगातार गंगा घाट पर बैठा गंगा मैया को दर्शन देने के लिए पुकारता रहा । मेरी तपस्या के इक्कीसवें दिन गंगा माता प्रकट हुई और मुझे इतनी घोर तपस्या करने का कारण पूछा । मैंने गंगा माता को बताया कि हमारे देश के करोड़ों भक्तों का मानना है कि आपके पावन जल में स्नान करने से लोगों के पाप कर्म धुल जाते है, अगर यह बात सही है तो इसका मतलब यह हो गया कि लोगों के स्नान करने के पश्चात आप भी मैली हो गई, आप भी पापी हो गई, अतः , मेरा आपके चरणों में विनम्र प्रश्न है कि आप स्नान करने वाले लोगों द्वारा छोड़ी गई गन्दगी या उनके पापों का क्या करती हैं ?" जवाब में गंगा मैया ने बताया, " मेरे उदगम स्थान से लेकर मेरे जल मैं असंख्या ईश्वरीय तत्व घुले मिले होते हैं, जिसके कारण मैं मैली नहीं होती, और वैसे भी मेरा कर्म तो केवल निरन्तर बहते जाना है और बहते - २ मैं लोगों द्वारा छोड़े गए पापों को अपने जल में बहाकर साथ ले जाती हूँ और ऐसे करते - २ आखिर में, उन सारे पापों को ले जाकर समुद्र देव - वरुण जी को अर्पित कर देती हूँ .…… ।"

गंगा मैया का जवाब सुनकर वह ऋषि मुनि समुद्र के पास चले गए और वहाँ एक किनारे बैठकर अपनी समस्या के समाधान हेतु वरुण देव को याद करके फिर से तपस्या शुरू कर दी। कुछ दिनों बाद उनकी तपस्या रंग लाई और वरुण देव प्रकट हुए, तब ऋषि ने उनसे सवाल किया, "हे प्रभु ! गंगा जो आपको अपने जल में सामिलित पाप अर्पित कर देती है, तो इसका मतलब निकलता है कि वह सभी पाप कर्म आपके पास रहते होंगे, जिसके कारण आप भी पापी हो गए । कृपया मुझे बताने का कष्ट करें कि आप उन पापों का क्या करते हैं ?" समुद्र देव ने उत्तर दिया , "मैं उन पापों को अपने पास क्यों रखूँ, कोई भी समझदार व्यक्त्ति किसी भी गन्दी वस्तु को अपने पास रखना पसंद नहीं करता, सो इसी तरह मैं भी गंगा मैया द्वारा मुझे सौंपे गए पापों को शीघ्र अति शीघ्र भाप बनाकर बादलों के पास भेज देता हूँ । अब तो वह बादल ही जाने कि वह पापों का क्या करते हैं ?" उसके बाद वह ऋषि मुनि बादलों के देवता - इन्द्र के पास गए और फिर उनसे वही सवाल पूछा, "हे इन्द्र देव ! समुद्र देव जो पापों को भाप बनाकर आपके पास भेज देते हैं, तो पहली दृष्टि में तो यही प्रतीत होता है कि पाप को ग्रहण करने वाला भी पापी ही बन जाता है, कृपया मेरी समस्या का समाधान कीजिये और मुझे समझाने की चेष्टा करें कि उन पापों का आप क्या करते हैं ?" इन्द्र देव ने जवाब दिया, "मेरी झोली तो वरुण देव द्वारा सौंपे हुए नीर से भरी हुई होती है और वह मेरे पास बहुत कम समय के लिए ही होती है। और दूसरी बात - मैं कभी यह जानने की कोशिश भी नहीं करता कि उसमें जल के अलावा और क्या - २ होता है, क्योंकि सूर्य देव द्वारा वायु मण्डल में छोड़ी गई में गर्मी से त्रस्त धरती माता से और वहाँ पर रहने वाले इन्सानों और तमाम किस्म के प्राणियों से समय - २ पर मेरे पास जल के लिए निवेदन आते ही रहते हैं ! अतः सूर्य की तपिश से तपती पृथ्वी और वहाँ पर रहने वाले करोड़ों जीवों की प्यास बुझाने के लिए मैं तो समय - २ पर अपने उस जल को वापिस धरती पर ही भेज देता हूँ, मैं तो अपने पास तो कुछ भी नहीं रखता, इस लिए मैं किसी भी किस्म के पापों को ग्रहण नहीं करता, सो आप अपने प्रश्न की जिज्ञासा को शांत करने के लिए धरती माता के पास ही जाएँ ।"

सो इस तरह वह ऋषि मुनि इतना भ्रमण करने पश्चात वापिस धरती पर ही आ गए और अपने व्याकुल मन की शान्ति के लिए उन्होंने धरती माता से वही प्रश्न दोहराआ । उत्तर में धरती माता ने जवाब दिया, "हे बालक ! जैसा कि आप जानते ही हैं कि परमपिता परमात्मा ने मुझे तो जगत जननी ही बनाया है, सो मेरा धर्म तो मेरे आँगन में विचरण कर रहे सभी प्रकार के मानवों और जीव जन्तुओं का भरण पोषण करना है । बादलों से जल लेकर मैं तो सभी प्रकार के जीवों के लिए अन्न, सब्जियाँ और नाना प्रकार के फ़ल उपजाती हूँ, जिसको मानव खाता है, मानव और अन्य जीव जन्तु जिस मानसिक स्थिति और जिस मनोवृत्ति से इसका भोग लगाते हैं, उसी मिक़दार या मात्रा में उनको पाप कर्म का प्रसाद भी प्राप्त हो जाता है ........ शायद इसीलिये कहते हैं - ”जैसा खाएं अन्न, वैसा बनता मन ।" ऋषि मुनि ने अपना दूसरा प्रश्न पूछा , "माते ! भोजन तो सभी करते हैं, इसका मतलब तो यह निकलता है कि सब लोग थोड़े बहुत पापों के भागीदार बन जाते है.…। क्या इनसे बचने के लिए कोई उपाय नहीं है, जिसके चलते इन्सान आगे के लिए पापों से बच सके और पृथ्वी पर लम्बे समय तक शान्ति, विकास और प्रगति स्थापित हो सके और कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे पर कोई जुल्म, अत्याचार या उसका शोषण न कर सके ! "

धरती माता ने थोड़ा गंभीर होकर जवाब दिया , "हे मानव ! हमारे देश में कितनी ऐसी कम्पनियाँ होंगी जो कि नाना प्रकार के ताले बनाती हैं, लेकिन कोई भी कम्पनी ऐसा कोई ताला नहीं बनाती जिसकी कोई चाबी न हो ! इसी तरह भगवान भी इन्सान को कोई ऐसी समस्या या परेशानी नहीं देते जिसका कोई समाधान न हो । बात केवल सच्चे मन और लगन से उसे मानने और भविष्य में भी उस पर साफ़ नियत से अमल करने की होती है! "ऋषि महाराज ने धरती माता को यकीन दिलाया कि वह उपाय बताएँ ताकि साधारण जन मानस उस पर अमल करके अपनी जिन्दगी सुधार सकें ।" धरती माता ने विस्तार से समझाते हुए कहा, "देखो बेटा ! प्रत्येक महिला भी मेरी ही तरह एक जननी है और देश की आबादी का आधा हिस्सा हैं, जब तक धरती पर इस आधे हिस्से पर और दलितों पर जुल्म, अत्याचार, अन्याय और शोषण होते रहेंगे, और इन तमाम तरह की नकरात्मक प्रवृत्तियों को रोकने के लिए पुलिस और अदालतें पूरी ईमानदारी से काम करने नहीं लगेंगी, अपने आप को नेता कहलाने वाले लोग अपनी संकीर्ण राजनीति से प्रेरित सोच-विचार और नीतियोँ को बदल कर पूरी लगन, मेहनत और ईमानदारी से देश की जनता के प्रति समर्पित नहीं हो जाते, तब तक न तो समाज का सुधार हो सकता है और न ही महिलाओं का । महिलाओं का शोषण और उन पर अत्याचार करके आप घर को सुखी और खुशहाल कैसे बना सकते हो? यह भी मत सोचो कि आपके घर की महिला तो महिला है, और बाकी सब महिलाएँ, महिलाएँ नहीं हैं, वह केवल भोग विलास की वस्तु मात्र हैं। समाज को सुखी, खुशहाल और मजबूत बनाना है तो आपको बाहर की सभी महिलाओं को भी आदर, मान, सम्मान और इज्जत की दृष्टि से देखना होगा, उनके साथ अच्छे सलीके से पेश आना होगा (बेशक वह किसी भी जाती / धर्म / मज़हब / प्रान्त / रंग / नसल या फ़िर भाषा से क्यों न सम्बन्ध रखती हो), ताकि वह बिना किसी ख़ौफ़ के अपनी जिन्दगी जी सकें और उन्हें भी पढ़ने, लिखने और तरक्की करने के उतने ही अच्छे अवसर मिलने चाहिए।" धरती माता की बात बीच में ही काटते हुए ऋषि महाराज ने अगला सवाल किया, "लेकिन माता ! हम अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देते हैं, सबके साथ अच्छे तरीके से कार-व्यवहार करने की शिक्षा देते हैं, वही बच्चा जब घर से बाहर जाता है , अपने दोस्तों मित्रों से मिलता - जुलता है, वहाँ से वह कुछ गलत किस्म की बातें सीख लेता है, जिसकी वजह से वह लड़कियों को किसी अलग ही दृष्टि से देखने लग जाता है, इसमें माता पिता क्या करें ?"

धरती माता ने जवाब दिया, "आप कपड़ा पहनते हो, तीन चार दिन में मैला हो जाता है, फिर उसे धोते हो न, दिन में एक बार अपने घर में झाड़ू पोंछा मारकर सफ़ाई भी करते हो न, शरीर की मैल उतारने के लिए और हमेशा तन्दरुस्त / निरोग रहने के लिए नहाते भी हो न, तो फिर घर से बाहर संसारी लोगों से मिलते जुलते, मेल-मिलाप करते - २ जब आपके मन पर मैल जम जाती है, उसे कैसे निकालते हो ?" साधु महात्मा बोले , " हे माता ! मन की मैल तो हमारे शरीर के अन्दर की तरफ़ होती है, उसे कैसे साफ़ करें ?" माता ने फिर विस्तार से समझाते हुए कहा, "देखो बेटा ! दुनिया में भगवान ने प्रत्येक बीमारी का इलाज़ बनाया हुआ है - जैसे कि आपको शरीर की बीमारी हो तो आप डॉक्टर के पास जाते हो, इसी तरह जब आपके मन के दर्पण पर मैल जम जाए, तो इसके लिए आपको सत्संग में जाना चाहिए ! समय - २ पर धरती पर अनेकों ऋषि-मुनि, संत, महात्मा, गुरू, पीर, पैगंबर - जैसे कि गुरु नानक देव जी, श्री रामजी, महात्मा गौतम बुद्ध, श्री कृष्ण जी, गुरु रविदास जी, संत कबीर जी इत्यादि अवतार लेते आए हैं, सत्तगुरू तो हमेशा मानव जीवन में ही अवतार लेते हैं, आम जनता जनार्दन का कल्याण करने के लिए, वह अपनी कल्याण यात्राओं के दौरान अपने प्रवचनों द्वारा इन्सान को एक अच्छी जिन्दगी जीने का सलीका सिखाते है। भगवान ने तो केवल इन्सान ही बनाये है, धरती पर आकर आप इन्सानों ने अपने आपको जात-पात, मजहब, धर्म, रंग-रूप-नसल, प्रान्त इत्यादि की जंजीरों में बाँध लिया और बाँट लिया और इसी की वजह से आप इन्सानों में मतभेद पैदा होते है, ईर्ष्या -द्वेष, नफ़रत जैसे नाग इन्सानों को डस रहे है, जिसके कारण एक इन्सान दूसरे का दुश्मन बन बैठा है, और इसकी वजह से ही रोज इतने दंगे फ़साद होते है और आदमी ही आदमी को, अपनी मतलब परस्ती के लिए, अपने अपने तरीके से नुकसान पहुँचा रहा है। इन सब विकारों से बचने के लिए, एक अच्छे इन्सान का कर्त्तव्य बनता है कि वह सत्तगुरु की शरण में जाए, वहाँ बैठकर पूरे ध्यान पूर्वक सतगुरु से अमृत वचन सुने और उनके अनुरूप अपनी जीवन शैली बनाए और उस पर आचरण करे और धीरे - २ अपने गुरु से ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करें, ताकि समाज में आचरण करते हुए अगर किसी वक़्त कोई गलती भी हो जाये तो उसके दुष्प्रभाव से बचा जा सके।"

ऋषि मुनि ने फिर माता से सवाल किया, "साधु संत इन्सानों को बुराई से कैसे बचा सकते हैं ?" धरती माता ने उसे समझाते हुए उत्तर दिया, "साधु संत आम आदमी के मुकाबले भगवान के ज्यादा करीब होते हैं, वह मन, बुद्धि, वाणी और कर्मों से सच्चे और सुच्चे होते हैं । सत्तगुरू तो स्वमं मानव रूप में साकार भगवान का ही अवतार होते हैं। आम आदमी अपनी तामसिक प्रवृत्तियों की वजह से अपने दैवी गुणों - जैसे कि - इन्सानियत, सत्यनिष्ठा, प्रेम, उदारता, सरलता, दया, सेवा, आत्मीयता, धर्म, सन्तोष, निष्ठा, कर्तव्य-पालन, करुणा, रहम इत्यादि सतगुणों को भुलाकर छल-कपट मतलब प्रस्ती, द्वेष, दुराचार, क्रोध, कलह, लालच, काम, क्रोध, अत्याचार, क्रूरता की ओर आकर्षित हो जाता है । बुरे और नीच कर्म करना आग की लपटों से खेलने के समान है, अगर आप ऐसे कर्म करते हो तो बिना झुलसे नहीं रह सकते । इन सब नकारात्मक प्रवृत्तियों से बचने के लिए सत्संग में जाएँ और अपने बच्चों को भी साथ लेकर जाएँ । जब आप लगातार सत्संग करेंगे, तो सतगुरु धीरे - २ आपके विचारों का शुद्धिकरण कर देगें और आपके मन मन्दिर की दहलीज़ पर एक फिल्टर लगा देंगे और तब दुनियादारी के, समाज में पनपते तमाम गलत विचार, गलत किस्म की धारणाएँ आपके मन पर कोई दुष्प्राभाव नहीं डाल सकेंगी । ज़रा गौर से देखना - कुत्ता भी जब बैठता है, अपनी पूँछ से जगह साफ़ करके ही बैठता है, जरा ध्यान से विचार करो ! अगर आपके मन मन्दिर में गन्दगी होगी तो भगवान भी वहाँ कैसे विराजमान होंगें ? इसलिए, सत्संग में जाना और सतगुरू से या फिर अन्य साधु संतों से अपने मन मन्दिर पर फिल्टर लगवाना अत्यन्त आवश्यक है। जब आपके मन पे फिल्टर लग जायेगा, तो बेशक आपके बच्चे घर से बाहर जाकर बाकी दुनियाँ से थोड़ा बहुत मेल मिलाप करते भी रहें, क्योंकि आप दुनिया को छोड़ तो सकते नहीं, अच्छे बुरे सब लोगों को इसी दुनियाँ में ही रहना है, लेकिन जब एक बार आप गुरु से फिल्टर लगवा लेगें तो फिर आप पाप कर्म से बचे रहेंगे। दुःख और तकलीफ़ आपको ज्यादा परेशान नहीं कर सकेंगे, क्योंकि आपका हृदय एक विशाल रूप ले लेगा और आपको यह सारी परेशानियाँ भी आपको परेशान नहीं कर सकेगी, क्योंकि सतगुरु भक्तोँ की स्वमं रक्षा करते हैं । बुरी बातें आप पर कुछ ख़ास प्रभाव नहीं डाल सकेंगी, सो इस तरह आदमी दूसरे आदमी तो क्या, किसी पराई लड़की या महिला पर भी कोई जुल्म नहीं करेगा।

ब्रह्मज्ञान के बारे में एक और बात ध्यान में रखने वाली और अच्छी तरह समझने वाली है - संसार की अत्यन्त ही दुर्लभ वस्तु है ब्रह्मज्ञान, जो कि स्वमं ईश्वर के द्वारा ही मनुष्य को प्रदान की जाती है और सतगुरू मानव शरीर में ही ईश्वर का अवतार होते हैं। संसार का बड़े से बड़ा इन्सान भी अपने बल से ब्रह्मज्ञान को न तो खरीद सकता है, और न ही गुरु कृपा के बिना इसे समझा जा सकता है । जैसे कि कुरुक्षेत्र युद्ध के मैदान में श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह ज्ञान का बोध करवाया, महात्मा बुद्ध ने उंगलीमार डाकू को एक जंगल में यह ज्ञान दिया, अष्टावक्र ने राजा जनक को यह ज्ञान दिया, गुरु नानक देव जी ने एक चांडाल - कौडे राक्षश को यह ज्ञान करवाया, भगवान रविदास जी ने मीरा को यही ज्ञान करवाया । ऐसे करके इस ज्ञान की अनेकों उदाहरणें दी जा सकती है, लेकिन सार सबका एक ही है कि इन्सान के लिए ब्रह्ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है । और अब आपकी वारी है - आप भी सत्संग करो, गुरु से ज्ञान लो, उसे समझो और यथा सम्भव कोशिश करो कि वह ज्ञान आपके जीवन में ढल जाए । निरंकार / प्रमात्मा भी हमारी तब सुनते हैँ, जब हम उसके बनाए हुए बंदो को ध्यान से सुनते हैँ, उनको समझने लगते हैं । वह हम से किसी भी तरह का हिसाब नहीँ माँगते बशर्ते हम उसके बंदो का कोई हिसाब किताब न रखेँ, और एक बात - बुरे आदमी की बुराई से नफ़रत करो, बुरे आदमी से नहीं, क्योंकि बुराई समाप्त होते ही बुरा आदमी भी एक अच्छा इन्सान बन सकता है !"

इतना समझाते हुए धरती माता अदृश्य हो गई और ऋषि महाराज ने भी पूरी वार्तालाप का किस्सा किरपा सागर को समझाते हुए अपनी वाणी को विराम दे दिया और उसे विदा ले ली ।

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