जीशान कादरी ने बहुत कुछ दिखाया है मेरठियां गैंगस्टर में

प्रेमबाबू शर्मा

मेरठियां गैंगस्टर के माध्यम से एक्टर, प्रोड्यूसर साथ ही गैंग्स ऑफ वासेपुर पार्ट 1 और 2 के स्क्रीनराइटर रह चुके जीशान कादरी ने अब डायरेक्शन में भी अपना हाथ आजमाया है और मेरठिया गैंगस्टर्स फिल्म बनाई है। फिल्म में उन्होेेंने अपने अनुभव के रंग दिखाये है,चुंकि यह इनकी पहली फिल्म है,पूरी न्याय करने का प्रयास किया है।

लूटपाट, धमकी और वसूली की अक्सर होने वाली घटनाओं पर बेस्ड इस फिल्म के द्वारा पहली बार जीशान ने फिल्म की स्क्रिप्ट और डायलॉग के साथ-साथ डायरेक्शन में भी हाथ आजमाया है और यह स्क्रीन पर दिखाई भी पड़ता है। फिल्म की कहानी शुरुआत में तो बांधे रखती है लेकिन अंततः दिशाहीन सी लगने लगती है ,हालांकि डायलॉग जबरदस्त है। जब भी एक्टर्स संवाद बोलते हैं। तो लगता है की उसके पीछे पुरजोर काम हुआ है। स्क्रिप्ट और बेहतर हो सकती थी और खासतौर से क्लाइमेक्स फीका सा दिखता है, जब आपकी दिलचस्पी बढ़ने लगती है तभी कुछ ऐसा हो जाता है की आप सोचने पर विवश हो जाते हैं कि आखिर ये था क्या? लेकिन पहली बार डायरेक्शन कर रहे जीशान का ये प्रयास सराहनीय है। मेरठ जैसे शहर में वसूली की वारदात को पर्दे पर काॅमेडी के तौर पर दिखाने का कार्य भी काबिल ए तारीफ है, जिसे अक्सर बाकी फिल्मों में काफी गंभीर तरह से दिखाया जाता है। फिल्म के हर किरदार को जीशान ने उतना ही तवज्जो दिया है जिस तरह से उनके गुरु अनुराग कश्यप ने ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के किरदारों को जगह दी थी।

फिल्म की कहानी की बात करे तो यह उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के कॉलेज में पढ़ने वाले 6 दोस्तों निखिल (जयदीप अहलावत), अमित (आकाश दहिया), संजय फोरेनेर (जतिन सरना), गगन (वंश) ,राहुल चैलेंजर (चंद्रचूड़), सनी (शादाब कमल) की है जिन्हें पढ़ाई के बाद नौकरी पाने के लिए कुछ गलत कदम उठाने पड़ते हैं और एक के बाद एक घटनाक्रम में फंसने लगते हैं, किडनेपिंग, गोलीबारी, लूटपाट और अंततः क्या होता है, इसे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

फिल्म के हर किरदार को जीशान ने उतना ही तवज्जो दिया है जिस तरह से उनके गुरु अनुराग कश्यप ने ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के किरदारों को जगह दी थी. निखिल (जयदीप अहलावत) , मामा (संजय मिश्रा) , मानसी ( नुशरत भरुचा), इंस्पेक्टर आर के सिंह (मुकुल देव) , अमित (आकाश दहिया), जयंतीलाल (बृजेन्द्र काला), संजय फोरेनेर (जतिन सरना), गगन (वंश) ,राहुल चैलेंजर (चंद्रचूड़) ,त्यागी (मलखान), सनी (शादाब कमल) के साथ-साथ पूजा थाप (इशिता शर्मा) और अल्का (सौंदर्या) ने अपने अपने किरदारों को उम्दा तरीके से निभाया है।

जहां तक संगीत की बात करे तो फिल्म के गीत मौके की नजाकत के हिसाब से पिरोए तो गए हैं लेकिन उनकी वजह से फिल्म की गति पर काफी प्रभाव पड़ता है। वैसे इन गीतों का फेमस ना हो पाना भी शायद इन्हें आलोचना का शिकार बनने पर विवश करताहै।

फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी सिर्फ इसकी बिखरी हुई स्क्रिप्ट है जिसकी वजह से फिल्म देखकर जब आप बाहर निकलते हैं तो इस फिल्म के सिर्फ संवाद और एक्टिंग याद रहती है, कहानी विलुप्त सी जान पड़ती है। इस सबके बाद भी फिल्म का अपनी ही मजा है।

निर्माता - प्रशांत तिवारी
प्रतीक तिवारी , शोएब अहमद , जयदीप अहलावत, आकाश त्यागी, वंश भारद्वाज, चन्द्रचूड, शादाब कमल, जतिन सरना, नुसरत भरूचा, इशिता शर्मा, संजय मिश्रा, मुकुल देव, ब्रिजेन्द्रा
अवधिः129 मिनट

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