बदहाली पर आंसू बहता लाला लाजपत राय दशहरा स्टेडियम, टेंट माफिया और बस ट्रांसपोर्टरों की गिरफ्त में


अशोक कुमार निर्भय 

पंजाबी बाग़ स्थित लाला लाजपत राय दशहरा स्टेडियम अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। यह स्टेडियम तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1985 में जनता को समर्पित किया था। बावजूद इसके ,कहने को और सरकारी रिकार्ड में यह बच्चों के खेलने के लिए क्रीड़ा स्थल है जहां खेल के नाम पर रत्ती भर भी सुविधाएं नहीं है। ना कभी यहाँ ट्रैक बन सका। कभी यहाँ कोई क्रिकेट खेलने के पिच तक नहीं बनी। यहाँ किसी और खेल जैसे हॉकी,फुटबॉल,बैडमिंटन,टेनिस,एथलेटिक्स आदि अनेक खेल ऐसे हैं जो यहाँ सुविधाएं बहाल नहीं होने के कारण कभी खेले नहीं जा सके। 


प्राप्त जानकारी के अनुसार मोतीनगर के खेल प्रेमी और समाजसेवी राजिंदर सिंह बबलू के प्रयास और अनुरोध पर तत्कालीन युवा मामले एवं केंद्रीय खेल मंत्री अजय माकन ने भी मेहरा निगमायुक्त को पत्र लिखकर खेल सुविधा बहाल करने और अन्य किसी गतिविधियों को नहीं चलाने के लिए अनुरोध किया था। उन्होंने पत्र में लिखा था की खेल अलावा कोई और गतिविधि यहाँ नहीं हो उसे आप सुनिश्चित करें। गौरतलब यह है की जब से यह स्टेडियम बना तब से इसकी देखरेख जिम्मेदारी और खेल करने के लिए इसे शिक्षा निदेशालय को हैंड ओवर किया गया था किन्तु आज तक खुद शिक्षा विभाग को इसकी जानकारी तक नहीं है। वर्तमान में यह स्टेडियम उद्यान विभाग पश्चिमी जोन देख रहा है। 2008 में सूचना अधिकार के तहत मांगी सूचना के आधार पर पता चला की इस स्टेडियम से सम्बंधित सभी निर्णय और आदेश उद्यान विभाग ही करता है। जबकि आर टी आई मुताबिक उद्यान विभाग ने वर्ष 2000 से लेकर 2008 तक इस स्टेडियम की कोई मेन्टेन्स नहीं की। 
उपराज्यपाल 19 दिसंबर 1996 के एक निर्णय के अनुसार तत्कालीन निगमायुक्त वी के दुग्गल ने 13 सितम्बर 1997 को आदेश उपायुक्त पश्चिमी जिला दिल्ली नगर निगम और निदेशक (उद्यान) पश्चिमी जिला को कहा कि खेल के अलावा किसी अन्य गतिविधि के लिए स्टेडियम तभी दिया सकता है तब निगमायुक्त से जाये। निगमायुक्त ने यह भी पालन करने के लिए कहा था कि किसी भी परिस्थिति में चार या पांच दिन ज्यादा यहाँ अन्य गतिविधि नहीं होनी चाहिए किंतु उद्यान विभाग अफसरों ने टेंट माफियाओं से सांठ गांठ करके पुरे साल इस स्टेडियम को निजी हाथों में सौंप दिया है। यहाँ तक की शादी पार्टी लिए यह स्टेडियम नियमानुसार किसी को भी दिया ही नहीं जा सकता। यहाँ केवल सामाजिक कार्यों,सांस्कृतिक गतिविधियों,धार्मिक एवं आध्यात्मिक कार्यों के लिए अनुमति लेकर पुरे महीने में सिर्फ चार पांच दिनों तक ही बुक कराया सकता है। लेकिन यहाँ शादी पार्टी के अलावा कुछ होता जो आदेशों का खुल्लम खुल्ला उलंघन है। जानकारी मुताबिक आयोजकों को स्टेडियम की यथास्थिति बरक़रार रखनी होगी लेकिन बाउंड्री तोडना रेलिंग हटाना यहाँ रोजाना टैंट माफिया करता है जिसपर निगम अपनी आँखे बंद किये रहता है। आदेश में यह भी कहा गया है कि अगर खेल गतिविधियाँ चल रही हैं किसी भी हिस्से को बुक नहीं किया सकता किन्तु स्टेडियम सभी हिस्से हमेशा बुक रहते हैं सूत्रों के मुताबिक जब बुक नहीं भी होते तो यहाँ बसों की पार्किंग बनवा कर उद्यान विभाग अधिकारी मोटी रकम अवैध रूप से वसूलते हैंजिसका हिस्सा सहायक आयुक्त और निदेशक तक भी जाता है। निदेशक उद्यान भी अपने आदेश संख्या डी ओ एच /पी ए /97 /1577 दिनांक 11 नवम्बर 1997 को यही आदेश जो निगमायुक्त दिया था उसका पालन करने के लिए उपायुक्त दिल्ली नगर निगम पश्चिमी ज़ोन,उपनिदेशक सहायक निदेशक उद्यान के अलावा अतिरिक्त आयुक्त (इंजीनियरिंग) मुख्यमंत्री मुख्य सचिव और सूचना देते हुए लिखा था। किंतु पैसे चमक आगे निगम अधिकारीयों अपना ईमान,जमीर सब बेच दिया और बच्चों के खेलने लिए बनाये स्टेडियम को टैंट माफिया के हाथों गिरवी रख दिया। खेल प्रेमी और समाजसेवी राजिंदर सिंह बबलू ने मांग की है कि यह स्टेडियम बच्चों के खेलने के लिए ही हो यहाँ खेल सुविधाएं बहाल हो और अन्य कोई गतिविधि नहीं हो। अब देखना होगा की निगम इसपर क्या कार्रवाई है।

Labels: , , ,