आदाब अर्ज़ है --रईस सिद्दीक़ी

औरत --माँ, बेटी, बहन, प्रेमिका

उर्दू शायरी में औरत के अनेक रूप, माँ ,बेटी ,बहन और प्रेमिका, सब का ज़िक्र है। आधुनिक साहित्य में, " औरत " रूपक और उपमा अलंकार के तौर पर भी नज़र आती है। आज "औरत " के अनेक रूप पर कुछ शायरों की ग़ज़लों से चुनींदा शेर पेश हैं।

भर गए ज़ख्म मसिहायी के मर्हम के बग़ैर
माँ ने की हैं मेरे जीने की दुआएं , शायद

--रईस सिद्दीक़ी



इस से बढ़ कर सानिहा गुज़रेगा क्या इंसान परमाँ के हाथों शहेर में बिकता हुआ बच्चा मिला
सानिहा= हादसा / दुर्घटना
--तरन्नुम कानपुरी
बात ये है के बयाँ कैसे करूँ ?
एक औरत भी छुपी है मुझ में !
-- अज्ञात

ये बच्ची चाहती है और कुछ दिन माँ को खुश रखना
ये कपड़ों की मदद से, अपनी लम्बाई छुपाती है
--मुनव्वर राना
नई हवाओ ! न मश्वरा दो के सिर्फ़ आँचल रहे गले तक
ये सर नहीं, क़ौम की है इज़्ज़त, जिसे दुपट्टे से ढक रही हूँ
मश्वरा=सुझाव, क़ौम=समुदाय /राष्ट्र
--शबीना अदीब
कहाँ औरत नहीं है, सर-ब-रहना
कहाँ अब परदे का मातम नहीं है
ये तसव्वुर की करिश्मा-साज़ियाँ
देखा जिस शै को, वो औरत हो गई

सर-ब-रहना= नंगे सिर , मातम =विलाप
तसव्वुर=कल्पना, करिश्मा-साज़िया = लीला , शै=चीज़    --शौक़ बहराइची

जिसको तुम कहते हो खुश-बख़्त , सदा है मज़लूम जीना हर दौर में औरत का , खता है लोगों
खुश-बख़्त=नसीब वाला ,सदा =हमेशा ,मज़लूम -पीड़ित , खता =गुनाह
--रज़िया फ़सीह अहमद

ज़िन्दगी भी किसी बाज़ार की औरत की तरह न बियाहे की हुई , और न कंवारे की हुई
--ख़ुर्शीद अकबर
ख़िज़ाँ इक ग़म-ज़दा बीमार औरत हवा ने छीन ली जिसकी रिदा है
ख़िज़ाँ=पतझड़ , ग़म-ज़दा=दुःखी , रिदा=ओढ़नी
--वज़ीर आग़ा

ऐरे-ग़ैरे लोग भी पढ़ने लगे है इन दिनों आपको औरत नहीं,अख़बार होना चाहिए
--मुनव्वर राना
 औरत को समझता था जो मर्दों का खिलौना 
उस शख़्स को दामाद भी वैसा ही मिला है
शख़्स =व्यक्ति
--तनवीर सिप्रा
बात ये है के बयाँ कैसे करूँ ?
एक औरत भी छुपी है मुझ में !
-- अज्ञात
ऐसी कहानी का मैं आख़री किरदार था जिस में कोई रस था, कोई भी औरत न थी
--मोहम्मद अल्वी
आबरू के लिए रोती है बहुत पिछले पहरएक औरत कि जो पेशा भी नहीं छोड़ती है
आबरू =औरत की इज़्ज़त
--मेराज फ़ैज़ाबादी
औरत को चाहिए की अदालत का रुख करें जब आदमी को सिर्फ़ ख़ुदा का ख़याल हो
--दिलावर फ़िगार
अगर ,सब सोने वाले मर्द-औरत पाक-तीनत थे तो इतने जानवर किस तरह बिस्तर से निकल आए
पाक-तीनत =पाक तबियत
--फ़ुज़ैल जाफ़री
यहाँ की औरतों को इल्म की परवा नहीं, बेशक मगर ये शौहरों से अपने बे-परवा नहीं होतीं
इल्म=ज्ञान/शिक्षा ,बेशक =निःसंदेह
--अकबर इलाहाबादी
औरत के ख़ुदा दो हैं , हक़ीक़ी-ओ -मजाज़ीपर उसके लिए कोई भी अच्छा नहीं होता
हक़ीक़ी=असली ख़ुदा , मजाज़ी-दुनियावी ख़ुदा / पति
--ज़हरा निगाह
औरत हूँ , मगर , सूरत-ए -कोहसार खड़ी हूँएक सच के तहफ़्फ़ुज़ के लिए , सब से लड़ी हूँ
सूरत-ए-कोहसार=पहाड़ की तरह,तहफ़्फ़ुज़= सुरक्षा
--फ़रहत ज़ाहिद



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