आदाब अर्ज़ है -रईस सिद्दीक़ी

इंसानियत एक ऐसी इंसानी खूबी है जिससे इंसान महान मानव बन जाता है। सच तो यह है की दुनिया का सब से बड़ा धर्म इंसानियत है। इंसानियत की ज़रुरत हरेक व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को है। 

उर्दू शायरों ने भी इसकी अहमियत को समझा और अपने एहसासात को अपनी शायरी में पिरोया है। इस सिलसिले में पेश हैं कुछ शायरों को चुनीदा शेर--

ये दुनिया तो सिमटती जारही है
मगर इन्सां बिखरता जारहा है
--रईस सिद्दीक़ी 


 सुकूत छाया है इंसानियत की क़द्रों पर 
ये ही है, मौक़ा -ए -इज़हार , आओ सच बोलें 
सुकूत =ख़ामोशी, क़द्रों=मूल्यों
मौक़ा -ए -इज़हार=कहने काअवसर
--क़तील शिफ़ाई

 करें ये अहेद कि अरबाब- ए -जंग हैं जितने
उन्हें , शराफ़त -ओ - इंसानियत सिखाना है 
अहेद=संकल्प , अरबाब- ए -जंग=जंग करनेवाले
-- अली सरदार जाफ़री 
 ये कैसी सियासत है मेरे मुल्क पे हावी
इंसान को इंसान से जुदा देख रहा हूँ 
-- साबिर दत 
 जिसकी अदा अदा पे हो इंसानियत को नाज़ 
मिलजाए काश ऐसा बशर , ढूंढ़ते हैं हम
नाज़ = गर्व , बशर=इंसान
--आजिज़मातवी 
 इंसानियत को तज के जो इन्सां नहीं रहा 
हिन्दू नहीं रहा , वो मुसलमाँ नहीं रहा 
--आज़िमकोहली 
 इंसानियत ज़माने से रूपोश हो गयी 
इस सिम्त भूल कर भी कोई देखता नहीं
रूपोश=खोना , सिम्त=तरफ़
-- अरशद मीनानगरी 
 सबक़ देते हैं अब इंसानियत का 
जो हैं इंसानियत के सख़्त दुश्मन
--महबूब राही
 ख़ुदग़र्ज़ियों ने आज के इंसान को ,मियाँ 
इंसानियत के नाम से, बेज़ार कर दिया
ख़ुदग़र्ज़ी =स्वार्थ , बेज़ार करना =ऊबना
---फ़सीह अकमल 
 इंसान तो इंसान है , लेकिन न जाने क्यों 
इंसानियत के हुस्न से, वो महरूम हो गया
महरूम=वंचित
--नदीम अरशद
 बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना 
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां हिना
मयस्सर=उप्लब्ध
-- मिर्ज़ा ग़ालिब 
 उस के हिस्से में आला मक़ाम आएगा 
जो भी इंसान , इंसान के काम आएगा 
आला मक़ाम= ऊंचा स्थान
-इनायत अली इनायत
 हक़ीक़त कह रहा हूँ ,ज़िन्दगी आसान हो जाए 
अना को छोड़ कर इंसान, गर इंसान हो जाए 
अना=अहं , गर =अगर
-- हुसैन काविश
 इस दौर में इंसान का चेहरा नहीं मिलता 
कब से मैं नक़ाबों की तहें खोल रहा हूँ 
नक़ाब =पर्दा
--मुगीसुद्दीन फ़रीदी 
 देख कर इंसान की बे-चारगी 
शाम से पहले परिंदे सो गए 
बे-चारगी =बे-बसी , परिंदे=पक्षी
--इफ़्फ़त ज़र्रीं 
 रूह में घोर अँधेरे को उतरने न दिया 
हमने इन्सां में, इन्सां को, मरने न दिया
-- राम रियाज़ 
 सुना हा हज़रते इन्सां यहीं हैं
नहीं मालूम, लेकिन हैं कहाँ पर 
-- सलीम अमरोहवी

 इन्सां वही इन्सां है कि इस दौर में जिसने 
देखा है हकीकत को , हकीकत की नज़र से 
-- चाँद कलवी

जब जब इसे सोचा है ,दिल थाम लिया मैंने
इंसान के हाथों से ,इंसान पे जो गुज़री है 

-- जगन्नाथ आज़ाद 
 कोई हिन्दू है या मुसलमान है
सब से पहले वो इंसान है 
--बी एस जैन जौहर




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