खिलाड़ियों में देश का नाम ऊंचा करने की जरूरत है: खजान सिंह


भारत के मशहूर तैराक खजान सिंह टोकस के जन्मदिवस (6 मई) को समर्पित लेख

एस. एस. डोगरा 

क्या आपको मालूम है आज भारतीय खेल इतिहास का एक विशेष दिन है। जी हाँ, आज ही के दिन यानि 6 मई, 1964 को भारत के मशहूर तैराक खजान सिंह टोकस का जन्म पिता स्वर्गीय श्री महीपत सिंह व माता स्वर्गीय श्रीमति विशालों देवी के यहाँ हुआ। दक्षिणी दिल्ली के मुनिरका गाँव में जन्मे तथा सरोजिनी नगर स्थित सरकारी स्कूल से शिक्षा ग्रहण की। इस तैराक ने 1986 में सिओल में आयोजित एशियाई खेलों की 200 मीटर वाली बटरफ्लाइ स्पर्धा में रजत पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया। इस तरह वह भारत के पहले तैराक बने जिन्होने तैराकी में विश्व स्तर पर व्यक्तिगत प्रतियोगिता में पदक जीता। गौरतलब है कि इन्होने सन 1981-82 में राष्ट्रीय तैराकी प्रतियोगिता में पाँच पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का आभास भलीभाँति करा दिया था। इसके बाद दिल्ली में आयोजित प्रतियोगिता में पाँच स्वर्ण, दो रजत व एक कांस्य पदक जीता। उसके बाद त्रिवेन्द्रम में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में सात स्वर्ण, दो रजत व एक कांस्य पदक जीते। 1987 में अहमदाबाद में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता में 100 मीटर की फ्री स्टाइल स्पर्धा को 55.21 सेकंड में तय करते हुए एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। तैराकी में अपार सफलताएँ हासिल करने के फलस्वरूप भारत सरकार ने उन्हे 1984 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मान्नित भी किया। 1988 में कलकत्ता में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की विभिन्न तैराकी स्पर्धाओं में गजब का प्रदर्शन करते हुए कुल आठ पदक जीत डाले। 1988 में विश्व पुलिस खेल में 100 मीटर बट्टरफ्लाई स्पर्धा में रजत पदक भी उनके द्वारा अर्जित विशेष उपलब्धियों में शामिल है। खजान सिंह ने 1982 में ब्रिस्बेन के कोमोनवेल्थ खेल, 1982 में दिल्ली आयोजित एशियाई खेल, 1984 में मास्को में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं के अलावा 1988 में सिओल ओलिम्पिक में देश का प्रतिनिधित्व करते हुए उम्दा प्रदर्शन भी किया। वे अपनी तमाम सफलताओं का श्रेय अपने परिवार और गुरु श्री मैचन्द, जर्मन कोच बर्ड जॉन के तथा आस्ट्रेलियाई कोच एरिक आरनोल्ड को देते हैं। जबकि, विश्वविख्यात अमेरिकी तैराक मार्क्स पीड व मैट बोइंडी उनके रोल मॉडल रहे हैं।

सन 1992 में, खजान सिंह, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त निशानेबाज चारु लता से विवाह सूत्र में बन्ध गए। खजान सिंह क्रिकेट के भी दिवाने हैं साथ ही भारत के महान हरफनमौला क्रिकेट खिलाड़ी कपिल देव के बहुत बड़े प्रसंशक हैं। अपनी कड़ी मेहनत व लगन के दम पर लोहा मनवाने वाले भारत के इस सपूत ने भारतीय खेलों में अनूठी पहचान बनाई है। वर्तमान समय में, वे केन्द्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स में डी.आई.जी. के पद पर कार्यरत है। लेकिन तैराकी से नाता आज भी कायम है और वे अपनी स्विमिंग अकडेमी में युवा तैराकों को ट्रेनिंग देने में निरन्तर प्रयासरत है।


युवा खिलाडीयों पर चिन्ता जताते हुए उनका मानना है कि आज अभिभावकों व कोचों की फिजुली दखलन्दांजी के कारण अच्छे खिलाड़ी आगे नहीं आ पा रहे हैं। और एक खिलाड़ी के कैरियर के नित नए मुकाम हासिल करने में, उचित कोचों का चुनाव भी एक अहम भूमिका अदा करता है। एक अच्छे खिलाड़ी के गुणों पर प्रकाश डालते हुए उन्होने कहा कि ऊंचे मनोबल, घमण्ड को त्यागकर, मिलनसार व्यक्तित्व व अनुशाषित व्यवहार से किसी भी क्षेत्र में अपार सफलताएँ प्राप्त की जा सकती हैं। दूसरी तरफ उनका विचार है कि वर्तमान समय में खिलाड़ियों की सरकार से बहुत अपेक्षाएँ बढ़ गई है। भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है यदि हमारे नवोदित खिलाड़ी पूर्ण विश्वास व मेहनत करते हुए अपने खेल पर ध्यान केन्द्रित कर लेंगे तो उन्हे खेल के मैदान में उम्दा प्रदर्शन करने से कोई नहीं रोक सकता है। इसके अलावा खिलाड़ियों में अपने वतन के प्रति जज्बा होना चाहिए ताकि वे अपने शानदार प्रदर्शन के बलबूते से देश का झण्डा ऊंचा कर सके।

Labels: , , ,