वीरा से मिली पहचान : विश्वप्रीत

चन्द्रकांत शर्मा 

अब टेलीविजन पर ऐसे कलाकार आ रहे हैं, जो एक ही किरदार से सुपरहिट हो जाते हैं। इसमें केवल किरदार मजबूत होना ही कारण नहीं है, बल्कि कलाकार की मेहनत भी मायने रखती है, जो अपने किरदार में इतना डूब जाता है कि नकारात्मक हो या सकारात्मक, लोग उसे चाहने ही लगते हैं। हाल ही में स्टार प्लस के शो 'वीरा' में बांसुरी के किरदार से चर्चित होने वाली विश्वप्रीत का नाम ऐसे ही कलाकारों की सूची में शामिल किया जा सकता है। अब डिज्नी के शो 'मैट्रिक पास' में लीड रोल कर रही विश्वप्रीत इस किरदार में भी वेराइटी के साथ दिखाई दे रही हैं। हाल ही में विश्वप्रीत से खुलकर बातचीत हुई। प्रस्तुत ​है बातचीत के प्रमुख अंश :

मैट्रिक पास में अपने किरदार के बारे में बताएं?
डिज्नी के इस शो में मैं एक स्कूल टीचर माया आहुजा के किरदार में हूं। जिसके जीवन में खूब उतार-चढ़ाव हैं। लेकिन हद तो तब हो जाती है, जब उसके पति और बेटा एक ही क्लास में पढ़ रहे होते हैं। उसका पति गोल्डी आहुजा स्कूल ड्रापआउट है और 40 साल की उम्र में वह अपने चाचा की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए आठवीं कक्षा में एडमिशन लेता है। इसी कक्षा में माया भी पढ़ाती है, जो उसकी पत्नी है। तो एक तरह से माया को अब पत्नी, गृहिणी और मां के साथ-साथ अच्छी स्कूल टीचर का किरदार भी निभाना है और खुद को साबित करना है क्योंकि पति के साथ-साथ उसकी प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। यही नहीं माया को हर दिन अपने किरदार के साथ जूझना भी पड़ता है। सच कहा जाए तो माया आज की महिला का प्रतिनिधित्व करती है, जो जीवन के हर कदम पर संघर्ष करती नजर आती है।

वीरा के किरदार बांसुरी ने आपको क्या दिया?
मैं तो कहूंगी सब कुछ वीरा ने ही दिया है। नाम,शोहरत और टीवी की दुनिया में काम करने का तरीका। एक बड़ा प्लेटफाॅर्म था, जिस पर मुझे खुद को साबित करना था। वैसे भी तीन-चार माह के लंबे आॅडिशन के बाद मुझे यह किरदार मिला था। मुझे आइडिया नहीं था कि यह किरदार कितना बड़ा होने वाला है और फिर सामने एक बड़ी स्टार कास्ट हो, तो नए कलाकार के नर्वस तो होना ही था। और वाकई पहले दिन के शूट में मैं काफी नर्वस थी। लेकिन उसके बाद सब कुछ ठीक हो गया। साथी कलाकारों ने मेरे नयेपन को समझा और मेरी खूब मदद की। फिर धीरे-धीरे मैं इसमें सेट हो गई।

आपको एक्टिंग में कैसे इंटरेस्ट आया और कब से इसकी शुरूआत हुई?
मैंने कभी सोचा नहीं था कि एक्टिंग भी करूंगी। हालांकि पंजाब में मैं नाटक वगैरह में भाग लेती थी और एक बार जब एक छोटे से प्ले में जसपाल भट्टी जी के साथ काम करने का मौका मिला और उन्होंने मेरे काम की तारीफ की, तो लगा मेरे अंदर एक्टर है। और फिर भट्टी जी का आशीर्वाद मिलना भी बड़ी बात है। इसके बाद से ही मैं इसके प्रति सीरियस हो गई और चंडीगढ़ से फैशन डिजाइनिंग पूरी करने के बाद मुंबई आ गई।

क्या आप हमेशा एक्टिंग ही करना चाहती हैं या और कुछ भी ड्रीम है?
मैं पंजाब के एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखती हूं। मुझे पता है कि समाज में किस तरह की समस्याएं होती हैं। इसलिए सोशल वर्क जरूर करूंगी और अपने पिता के नाम पर कुछ अच्छा काम करने का इरादा है। मेरा मानना है कि अगर हम अपनी जिंदगी में किसी के काम आए, तो इससे अच्छी बात नहीं हो सकती है।

किसी सीरियल के लिए हां करने से पहले क्या देखती हैं?
सबसे पहले तो मैं उस शो का मैसेज देखती हूं। अगर वह अच्छा है, तभी हां करती हूं। हां मेरा बांसुरी का किरदार नकारात्मक जरूर था, लेकिन उससे भी यह संदेश जाता था कि लोग किस तरह तिकड़म कर सकते हैं और एक महिला की सोच कहां तक जा सकती है। इसलिए लोगों को इतनी बुरी बातों की जानकारी देना और उसके प्रति आगाह करना भी अच्छी बात है। वहीं माया का किरदार मेहनत के साथ-साथ जीवन में संतुलन बनाए रखने का संदेश देता है। माया एक साथ किस तरह इतनी सारी भूमिकाएं कर सकती है, यह भी इस शो का एक अच्छा संदेश है।

क्या टीचर प्ले करना कठिन है या आपके लिए यह आसान रहा?
हालांकि रोल कोई भी हो, जब तक आपको समझ में न आए, वह कठिन ही रहता है। लेकिन माया के किरदार के साथ मेरे लिए अच्छी बात यह है कि मेरी मां भी स्कूल टीचर रही हैं और मैंने नजदीक से उनकी दिनचर्या देखी है। इसलिए मैं माया के किरदार को बेहतर ढंग से निभाने में कामयाम रहूंगी। मुझे पता है कि एक कुशल टीचर के अंदर किस तरह की क्वालिटीज होनी चाहिए।

आप टीवी में ही सक्रिय रहना चाहती हैं या कुछ बड़ा करना चाहती हैं?
अगर मौका मिले तो बेशक हिंदी या पंजाबी फिल्मों में काम करना चाहती हूं। अलबत्ता कुछ पंजाबी मूवीज के लिए काॅल है, पर टीवी से समय मिले, तभी कर पाऊंगी।

अगर आपको समय मिले, तो क्या करना पसंद करती हैं?
मुझे गाने गुनगुनाना पसंद है। जब भी फ्री होती हूं, हिंदी या पंजाबी गाने गा लेती हूं। वैसे वडाली जी को सुनना बहुत भाता है।

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