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प्रेमबाबू शर्मा

ब्यूटी एंड द बीस्ट
फ्रेंच फिल्म ‘ब्यूटी एंड द बीस्ट’ भी एक ऐसी  ही फिल्म है, जो परीकथाओं की दिलचस्प कहानियों-घटनाओं का वर्णन करती है। ‘ब्यूटी एंड द बीस्ट’की कहानी को कई बार सिनेमाई पर्दे पर दिखाया जा चुका है, लेकिन ‘हैरी पॉटर’ व ‘लॉर्डस ऑफ द रिंग्स’ सिरीज की तरह इसका क्रेज भी बड़ों और बच्चों दोनों के सिर चढ़ कर बोलता दिखता है। कहानी शुरू होती है 1810 के फ्रांस से, जिसका एक सिरा जुड़ा है बेल (लि सैडॉक्स) से। दुख-सुख की धूप-छांव ङोलता बेल का परिवार अब एक छोटे से घर में आ सिमटा है। उसे अब भी इंतजार है उस बड़ी खुशी का, जिसके लिए उसका परिवार संघर्ष कर रहा है।

यही जद्दोजहद एक दिन बेल को एक बीस्ट (विंसेंट कासेल) यानी दंतकथाओं के राक्षस से मिलवाती है। बस, यहीं से उसकी जिंदगी बदलने लगती है। सपनों सरीखी दुनिया पाकर वो खुश तो रहती है, लेकिन कहीं न कहीं उसे बीस्ट के साथ अपने लगाव-अलगाव से परेशानी भी होने लगती है। उधर बीस्ट भी बेल के आने से एक अलग ही दुनिया का आनंद लेने लगता है। लेकिन परी कथाओं में हर बात सुनहरी नहीं होती। बेल के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है। ‘ब्यूटी एंड द बीस्ट’ परीकथा होने के बावजूद पूरी तरह से बच्चों के लिए नहीं लगती। इसकी वजह है इसका कंटेंट और अत्याधुनिक स्पेशल इफेक्ट्स। बड़ों को भी ये फिल्म बांधे रख सकती है। कहानी वही है, लेकिन उसे स्पेशल इफेक्ट्स की मदद से रोचक बना दिया गया है। अगर आप सीजीआई तकनीक से सुसज्जित इस नए कलेवर को देखना चाहते हैं तो ये फिल्म बुरी नहीं है।

निर्माता रिचर्ड ग्रैंडपियर व निर्देशक क्रिस्टोफर गैंस की इस फिल्म में कलाकार विंसेंट कासेल, लि सैडॉक्स, एंद्रे डस्सोलियर, डुराडो नॉरिगा है।



फिल्म जिद
चॉकलेट’ और ‘हेट स्टोरी’ जैसी थ्रिलर फिल्में बना चुके विवेक की ‘जिद’ सही मायने में एक थ्रिलर फिल्म है। इसके पहले ‘ देख कर कहना पड़ेगा कि उन्होंने पहले से बहुत इम्प्रूव किया है। न केवल मेकिंग के लिहाज से, बल्कि एक स्टोरीटैलर के रूप में भी उन्होंने इस फिल्म को इस काबिल बना दिया है कि आप सीट से हिलने तक का नाम नहीं लेंगे। इसके कई कारण हैं, लेकिन पहले फिल्म का कहानी। रोहन (करनवीर शर्मा) एक पत्रकार है और उसका अपनी प्रेमिका प्रिया (श्रद्धा दास) से अलग होने के बाद में अपने गम को भुलाने और नई जिंदगी की शुरुआत के लिए करण (मोहन कपूर) उसे अपने एक परिचित के घर किराए पर रहने के लिए भेजता है। यहां उसकी मुलाकात होती है माया (मनारा) से। माया खुद ही रहस्यमयी है। माया सुंदर है, उत्तेजक है और ऐसी हरकतें करती है कि हर किसी की नजर उस पर पड़ती है। एक दिन माया और रोहन एक पाटी से घर लौट रहे होते हैं कि उनकी गाड़ी से एक एक्सीडेंट हो जाता है। अगले दिन उन्हें पता चलता है कि एक्सीडेंट में मरने वाली एक लड़की थी, जिसका नाम था नैंसी। नैंसी का नाम सुन कर रोहन के होश उड़ जाते हैं, क्योंकि नैंसी प्रिया की बहन होती है। उधर रोहन जब ऑफिस आता है तो करण उसे नैंसी का केस फॉलो करने के लिए कहता है। मामले की जांच कर रहे इंस्पेक्टर मोजेज का शक पहले रोहन और फिर प्रिया पर जाता है, क्योंकि नैंसी के मरने के बाद सब कुछ प्रिया के नाम होने वाला है, लेकिन किसी को नहीं पता होता कि माया अंदर ही अंदर क्या जाल बुन रही है, क्योंकि वह रोहन से प्यार करती है। 

इससे आगे की कहानी बताना एक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म के साथ नाइंसाफी होगा। बहरहाल इस फिल्म की अच्छी बातों में से सबसे अहम है इसका प्लॉट। निदेशक ने केवल तीन-चार किरदारों के इर्द-गिर्द एक रोचक मडर मिस्ट्री बुनी है। माया का घर उसकी ही तरह रहस्यमयी है। फिल्म के हर सीन में बारिश होती दिखाई गई है, जिसका फिल्मांकन इतना बढ़िया है कि थोड़ी ही देर में आप बारिश की नमी और छींटों का हिस्सा बनने लगेंगे। लेखक ने माया के किरदार को बेहद उत्तेजक बनाया है, जिसे देख कर ड्र बैरीमूर की 1992 में आई फिल्म ‘पॉयजन आईवी’ की याद आती है। और रोहन को जिस तरह से फंसा हुआ दिखाया गया है, उसे देख कर केविन बेकॉन और डेनिजि रिचडस की 1998 में आई ‘वाइल्ड थिंग्स’ जेहन में घूमने लगती है। हालांकि माया के किरदार को निभाने वाली मनारा की डिक्शनरी से अभिनय लगभग गायब है। लगता है कि उन्हें फिल्म में केवल उत्तेजक दृश्य बरसाने के लिए रखा गया है। करणवीर शमा ने अच्छी एक्ंिटग की है। वो और बेहतर हो सकते हैं। मोहन कपूर हमेशा की तरह ओवर हो गए हैं, पर श्रद्धा दास पहले के मुकाबले काफी नियंत्रण में दिखी हैं। फिल्म का संगीत काफी अच्छा है, मैलोडियस है और दृश्यों के साथ मेल खाता है। इस फिल्म का क्लाईमैक्स अहम है, जो काफी हद तक कयास के काबिल है, लेकिन इस क्लाईमैक्स के बाद एक एंटी क्लाईमैक्स भी है, जो थोड़ा बचकाना लगता ​​ है। फिर भी फिल्म शुरू से अंत तक बांधे रखती है। कभी अपने संगीत की वजह से तो कभी माया के मायाजाल की वजह से।

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