जिसके सिर ऊपर तू स्वामी सो दुःख कैसा पावै !

आर. डी. भारद्वाज "नूरपुरी" 

यह घटना बड़ी पुरानी है, यह तब की बात है जब गुरु नानक देव जी अभी बालक ही थे और उनके सम्पूर्ण गुरु रूप में लोगों को अभी दर्शन नहीं हुए थे, या यूँ कहना शायद ज्यादा उचित होगा कि नानक देव जी गुरु रूप में अभी खुलकर प्रकट नहीं हुए थे । एक दिन नानक देव जी की माता तृप्ता जी कहीँ जाने के लिए जैसे ही घर से निकली, बालक नानक देव जो उस वक़्त अपने घर के सामने ही अपने दोस्तों के संग खेल रहे थे, वे भी अपना खेल छोड़कर उनके साथ जाने को तैयार हो गए । माता जी ने बहुत समझाया कि आप अपने दोस्तों के साथ ही खेलें और वह शीघ्र ही वापिस आ जाएँगी ! लेकिन बालक नानक देव जी जिद करने लगे कि वह भी साथ ही जाएँगे । माता जी ने बहुत समझाया कि जहाँ वह जा रही हैं, वहाँ बच्चों का कोई काम नहीं है, वह तो सिर्फ़ एक बीमार बालक को देखने जा रही हैं, अत: वह यथाशीघ्र लौट आएँगी । लेकिन बालक नानक देव जी ने अपनी माता की एक न सुनी और अपनी जिद पर अड़े ही रहे कि वह भी साथ जायेंगे । तब उनकी उम्र लगभग 5 - 6 वर्ष की ही होगी । जब बालक नानक देव जी अपनी जिद छोड़ने से इन्कार कर दिया तो माता जी उनके हठ के सामने हार गईं और बोली, "अच्छा चलो ! वहाँ जो मुझे लड्डू मिलेंगे, तुम भी खा लेना .......... "

दरसअल माता तृप्ता जी को अपने ही गाँव तलवंडी रायभोये की (जो आजकल ननकाणा साहिब के नाम से प्रसिद्द है और यह शहर पाकिस्तान के शेखुपुरा जिले मैं है), में जाना था । उनके गाँव में लख्खो नाम की एक महिला के घर जाना था, क्योंकि उनका बेटा कुछ दिनों से बीमार चल रहा था और उनका घर गाँव की दूसरी तरफ था ! चलते -2 थोड़ी ही देर बाद माता जी बालक नानक देव जी के साथ उनके घर पहुँच गईं । उनसे पहले भी वहाँ गाँव की कुछ और औरतें उनके घर बरामदे में बैठी हुई थी ! माता तृप्ता जी ने बालक नानक देव को कहा के आप एक कोने में बाकी बच्चों के संग खेलो और वह खुद लख्खो जी के बेटे की तबियत के बारे में और उसके उपचार के बारे में बातचीत करने चली गई ।

घर आए मेहमानों को देखकर जहाँ उस बीमार बच्चे की माता जी को थोड़ी हिम्मत मिल तो रही थी कि गाँव वालों ने उनका दुखदर्द समझा और समय निकालकर हालचाल पूछने भी आई, लेकिन अंदर ही अंदर वह थोड़ा घबराई हुई थी ! कोई डर उनको अंदर ही अंदर खाए जा रहा था .......... फ़िर न जाने क्यों माता लख्खो जी की आँखें भर आईं और वह जोर जोर से सिसकियाँ लेकर रोने लग गईं । माता तृप्ता जी ने और वहाँ मौजूद अन्य औरतों ने उनको बहुत दिलासा देने क़ी कोशिश की, कि चिंता की कोई बात नहीं है, बालक का इलाज़ गाँव का वैदय कर ही रहा है, अलबत्ता वह बच्चा जल्दी ही बेहतर हो जायेगा । लेकिन माता लख्खो जी को धीरज नहीं आ रहा था । क्योंकि उनका बेटा कई दिनों से बीमार चल रहा था और उसकी हालत में कोई संतोषजनक सुधार दिखाई नहीं दे रहा था, शायद यही कारण था कि वह थोड़ी ही देर बाद ज़ोर - 2 से रोने लग गई और उनकी आँखों में आँसूं थम ही नहीं रहे थे ! हालाँकि माता तृप्ता जी को उनके रोने का थोड़ा सा आभास तो था, लेकिन वह अपनी जुबान से कुछ कहना नहीं चाहती थे । दूसरी महिला ने अभी भी रोना बंद नहीं किया था ।

उनका लगातार रोना सुनकर और घर में ऐसा दुःखद वातावरण देखकर आँगन में खेल रहे बच्चे भी संजीदा हो गए और उन्होंने भी परेशान होकर अपना खेल बंद कर दिया और धीरे - 2 वह भी महिलाओँ के पास ही आकर खड़े हो गए ! ख़ैर, वहाँ पर उपस्थित औरतों ने पूछा कि अगर उनको बीमार बच्चे के हो रहे इलाज़ पर भरोसा नहीं हैं तो वह किसी दूसरे हकीम से दिखा लें, ताकि मन को तसल्ली मिल जाए । फिर थोड़ी देर बाद लख्खो जी चुप हो गई , तब एक महिला ने हिम्मत करके पूछा कि आखिर उनके दिल में कौन सी ऐसी बात आ गई थी जिसके कारण वह इतना घबरा गई और बेतहाशा रोने लग गई ! तब लख्खो जी ने उत्तर दिया ,"आपको तो मालूम तो ही है कि इस बालक से पहले भी हमारे चार बच्चे पूरे हो चुके हैं, अत: अब जब भी यह बालक बीमार होता है तो मेरा जी घबराने लग जाता है कि पता नहीं यह भी बचेगा या नहीं या फिर हमारे बाकी बच्चों की तरह यह भी हमें रोते कुरलाते छोड़कर चला जाएगा।"

घर आई सभी औरतों ने उनको दिलासा दिया कि उन्हें भगवान पर भरोसा रखना चाहिए ! उन सभी की बातें सुनकर बालक नानक जी के बाल मन पर इसका गहरा असर हुआ । उन्होंने आगे आकर कुछ कहने का प्रयास किया, लेकिन माता लख्खो जी ने उनको कहा, "बेटे आप जाओ, खेलो। आप अभी बच्चे हो, आप यह सब बातें अभी नहीं समझ सकते !" लेकिन बालक नानक देव जी वहाँ से हटे नहीं और उन्होंने उस बीमार बच्चे को गोद में लेने की ज़िद की । सभी औरतें हैरान थी कि यह छोटा सा बालक नानक देव आखिर कर क्या रहा है? फिर किसी अन्य महिला ने कहा कि यह भी एक बच्चा ही है और उसके दिल में बीमार बालक के प्रति स्नेह आ रहा है, सहानुभूति जागृत हो रही है, थोड़ी देर के लिए बीमार बालक को इसकी गोद में दे देते हैं । तो इस प्रकार बालक नानक देव जी भी उसी चारपाई पर एक तरफ बैठ गए और बीमार बच्चे को गोद में लेकर उसकी माता से पूछने लगे, "चाची ! इसका नाम क्या रखा है ?" चाची ने जवाब दिया, "बेटा ! हमने तो अभी तक इसका कोई नाम नहीं रखा । क्योंकि इसके लम्बे समय तक जीवित रहने का हमें यकीन ही नहीं था, इस लिए हम तो अक्सर इसे मरजाना कहकर ही बुलाते हैं ।"

बालक नानक देव जी ने चाची से फिर सवाल किया, "लेकिन चाची ! पहले आप मुझे यह बताओ कि आप रो क्यों रहे थे? क्या इसकी की तबियत ज्यादा ख़राब है?" लख्खो जी को कोई और जवाब नहीं सूझ रहा था और उन्होंने संक्षेप में उत्तर दिया, "बीटा, आप जाओ ! और बच्चों के संग खेलो ! आप अभी बहुत छोटे हो, यह बातें आपकी समझ से बाहर है । वैसे मैं इसी लिए रो रही हूँ कि ये दुनिया देखे बिना ही मर न जाये ! इससे पहले भी हमारे घर चार बच्चे हुए हैं, लेकिन जितने भी हुए, कोई नहीं बचा, कोई दो महीने बाद मर गया, कोई चार महीने बाद, बस यह बच्चे हमारे घर आते हैं और हमें एक सपना सा दिखा कर चले जाते हैं ।" लेकिन बालक नानक देव ने बीमार बच्चे के माथे पर सहजता से हाथ रखा जैसे कोई बहुत स्याना वैद हकीम किसी मरीज़ की परेशानी सही सही जानने की कोशिश कर रहा हो। और फिर बड़ी सहजता से बोले, "चाची ! इसकी तबियत तो भली चंगी है, आप चिन्ता मत करो ! देख लेना थोड़े ही दिनों में यह बिलकुल अच्छा हो जाएगा !" एक अबोध बालक की जुबान से इतने बड़े दिलासे और हिम्मत की बात सुनकर सभी महिलाएँ हैरान रह गई और पूछने लगी, "क्या यह बालक सचमुच अच्छा हो जाएगा?"

"हाँ ! हाँ ! चाची यह बिलकुल अच्छा हो जाएगा । देख लेना ! थोड़े ही दिनों में यह भागने दौड़ने लगेगा और हमारे साथ खेलने आया करेगा !" बालक नानक देव जी की बड़ी ही सरलता से कही हुई दिलासा देने वाली बातें सुनकर माता लख्खो जी को बड़ी राहत महसूस हुई और वह बालक नानक देव की तरफ टिकटिकी लगाकर देखने लग गई ! वहाँ पर उपस्थित अन्य महिलाएं को भी यकीन नहीं आ रहा था कि यह छोटा सा बालक ऐसी बड़ी - 2 और सियाणी बातें कैसे कर रहा है?

हालाँकि वह बीमार बच्चा, नानक देव जी से 3-4 वर्ष बड़ा ही था, नानक जी उसका सिर सहलाते हुए उसकी माता से कहने लगे, "देख लेना चाची ! हुण यह मरदा न ! यह लम्बी उम्र भोगेगा ! बस आपने इस बात का ख्याल रखना कि जब यह बड़ा हो जाये, इस बालक को मेरे हवाले कर देना , इसे मुझे सौंप देना ।" महिला जवाब देते हुए कहने लगी, "हाँ ! एक गाँव में रहने वाले सभी बच्चे आपस में दोस्त और भाई ही तो होते हैं, यह भी तो आपका ही भाई है, एक गाँव के सभी बच्चे मिलजुल कर ही खेलते है। इसी तरह यह भी आपके साथ ही खेला करेगा।" माता लख्खो जी ने अपने तरीके से बात समझाने की कोशिश की।"

इस तरह थोड़ी देर तक उस बच्चे को अपनी गोद में लेकर लाड दुलार करने के बाद नानक देव जी ने बालक को महिला को वापिस पकड़ा दिया और फिर कुच्छ समय बाद बाद वह अपनी माता के साथ अपने घर वापिस आ गए। वो नन्हा सा बिमार बालक अपने बड़े भाई बहनों की तरह मृत्यु को प्राप्त नही हुआ। बल्कि जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ती गयी, उसकी सेहत में भी सुधार होता गया और वह एक बड़े ही प्यारे से बालक के रूप में बड़ा होने लग गया । और नानक जी ने उस नन्हे बालक का नाम पता करते समय उसकी माता जी को जो शब्द कहा था कि अब यह "मरदा ना ", उसके बड़े होने पर यही उसका उपनाम उसका बिगड़ा हुआ नाम बन गया - अर्थात मरता न यानि कि - "मरदाना" ! छोटे से गाँव से यह बात पूरे शहर में फ़ैल गई कि एक छोटा सा बच्चा जिसे नानक देव जी ने बचपन में अपनी गोद में बैठाया था और जिसके बड़े भाई बहनों में से कोई भी नहीं बचा था, उस परिवार का लड़का मरदाना अब नानक देव जी के आशीर्वाद से लम्बी उम्र पा गया है ।

बाद में जब नानक देव जी सतगुरु के रूप में प्रकट हो गए और आस पास के गाँवों के लोगों में भी उनका सम्पूर्ण गुरु के रूप में मान सम्मान बढ़ता गया, यश चारों दिशाओं में भरपूर फैलना शुरू हो गया, उनके दो परम शिष्यों व मित्रों - बाला और मरदाना में से मरदाना एक था और यह दोनों बाकी की तमाम उम्र उनके साथ ही रहे । बाला हिन्दु परिवार से थे और मरदाना मुस्लमान ! मरदाना जी के पिता का नाम था भद्रा और उनकी माता का नाम था लख्खो ! यह दोनों गुरु नानके देव जी के परम मित्र भी थे तथा शिष्य भी थे । उन्होंने अपनी सारी उम्र बाबा नानक जी की सेवा में ही गुजार दी । बड़े होने पर उनकी शादी कर दी गई और उनको औलाद के रूप में दो बेटे और एक बेटी की प्राप्ति हुई । हमारा धार्मिक इत्तिहास बताता है कि भाई मरदाना जी ने 74 वर्ष की लम्बी उम्र भोगने पश्चात, 1534 में करतार पर में अपने प्राण त्याग दिए थे । गुरु नानक देव जो भी गुरबाणी के जो शब्द लिखते थे, और जब भी कहीं इनको सत्संग करना होता था, गुरु जी के लिखे हुए शब्दों को बाला जी गाया करते थे और मरदाना उन गीतों या शब्दों को संगीत बद्ध करके अपनी रबाब से संगीत में पिरोया करते थे । जब तक इस धरती पे धर्म की चर्चा होती रहेगी, सत्संगी संत महात्मा इस पूरी सृष्टि के मालिक, पर्मपिता परमात्मा, भगवान को याद करते रहेंगे, गुरु नानक देव जी का नाम सबकी जुबान पर आता ही रहेगा और तब तक उनके दो प्रिया शिष्यों - मरदाना और बाला का नाम भी बड़ी इज़्ज़त, मान और सम्मान से लिया जाता रहेगा !

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