खेलों में रूचि लेने से देश की जनता स्वस्थ होगी और सम्पूर्ण भारत खुशहाल हो जायेगा

एस.एस.डोगरा
ssdogra@journalist.com

“किताबी कीड़ा मत बने रहो. खेलो कूदो. दिन में चार बार पसीना बहाओ.”
"जीवन में खेल कूद नहीं है तो जीवन खिलता नहीं है."


उपरोक्त विचारों से प्रतीत होता है कि जिस भावनाओं से माननीय नरेंदर मोदी जी ने शिक्षक दिवस पर बच्चों को बड़े ही सहज भाव से सम्भोधित किया है वह वास्तव में इस देश के उज्जवल भविष्य का घोतक है. भारतीय इतिहास में आज तक किसी भी प्रधानमंत्री ने विशेष तौर पर शिक्षक दिवस पर बच्चों से इस कदर खुलकर वार्तालाप का साहस ही नहीं दिखाया. लगता है देश की चहुमुर्खी विकास के साथ साथ खेलों में भी अच्छे दिन आने वालें हैं.

वर्ष २०१० में भारत में आयोजित कोमेंवेल्थ खेलों मैडल का शतक यानि 101 मैडल हासिल करने के बाद हाल ही में संपन्न ग्लासगो कोमेंवेल्थ खेलों मैडल लिस्ट में मात्र 64 पदक जीतकर छाती ठोक रहे हैं. भारत क्रिकेट के आलावा किसी भी खेल अथवा खेल आयोजनों विशेषकर एशियाई व ओलंपिक या अंतरार्ष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में एक स्वर्ण,रजत व् कांस्य पदक तक हासिल नहीं कर पाता है. अरे भाई जरा तो सोचो सभी राष्ट्र खेलों की दुनिया युद्धस्तर पर तरक्की कर रहे हैं. हम यूरोपियन राष्ट्र के आलावा पडोसी एशियाई देशों प्रमुख रूप से दक्षिणी कोरिया, चीन, जापान आदि ने खेलों में जितने तेज रफ़्तार से विकास किया उनसे शायद कुछ सीखना ही नहीं चाहते हैं.

जो देश एक गरीब को रोजी, रोटी व झोपडी देने में सक्षम नहीं वो खेल को क्या बढ़ावा दे पायेगा .लोग इस देश दो जून की रोटी नहीं जुटा पाते है वे खाली पेट चल नहीं सकते खेलने की बात तो दूर की है.और तो और क्रिकेट के आलावा कितने अंतरार्ष्ट्रीय खिलाडी सन्यास लेने के बाद छोटे मोटे इलाज तक के लिए राशि नहीं जुटा पते हैं. जब तक खेलों व् खिलाडियों के लिए जनमानस में आदर नहीं होगा खेलों के लिए कारगर नीतियाँ बनाने के साथ-साथ उन्हें मैदान लागु नहीं किया जायेगा और इस निति निर्धारण में सभी उम्रवर्ग के खिलाडियों की भागीदारी जैसे उपयोगी उपायों को तुरंत लागु नहीं किया जायेगा तो कोई भी इस बीमार लकवाग्रस्त राष्ट्र का खेलों में विकास हो ही नहीं सकता है. उससे भी बड़ा गंभीर विषय यह है कि पूरा देश राजनितिक तिकड़म, घनी आबादी, बेरोजगार भ्रष्टाचार, बलात्कार, घोटालों, भाषा,क्षेत्रवाद, जातिवाद, धार्मिक कट्टरता, एक दुसरे की टांग खिचाई आदि में लिप्त है.

यहाँ नकारत्मक सोच वाले आकाओं के नाम का डंका बजता है सकारात्मक सोच रखने वाले कुछ लोग यदि इस ओर अगर प्रयास भी करें तो उसे बढ़ावा नहीं दिया जाता बल्कि अपनी महत्तवता कायम रखने के लिए नाकारा जाता है या भुला दिया जाता है. परन्तु यदि हमें इस राष्ट्र में खेलों का विकास करना है तो राष्ट्रीय स्तर पर एक ही जैसी खेल विकास निति तय करनी होगी. इसके तहत सबसे पहले हमें जड़ से प्रयास करने होंगे जिसमे अभिभावकों, शारीरिक शिक्षकों, खेल कोचों, स्कुल, कालेज तथा गली-मोहल्लों को एक सामूहिक अभियान की तरह लेकर शुरुआत करनी होगी. खेल व् खेल के सम्पूर्ण विकास के लिए सकारत्मक मानसिकता के साथ-साथ समय समय पर नियमित खेल प्रतियोगितायों का आयोजन तथा प्रतिभावान खिलाडियों को प्रोत्साहन व् उम्दा खेल के मैदान, नवीनतम खेल तकनीक/प्रणाली, उम्दा कोच, नियमित शारीरिक कसरत, पोष्टिक खुराक, राष्ट्रीय व् अंतरार्ष्ट्रीय खिलाडियों से वर्ष में एक दो बार मिलने (अनुभव साझा करने का मौका मुहैया कराना होगा. इन नवोदित युवा प्रतिभाशाली खिलाडियों शारीरिक मजबूती के अलावा मानसिक मजबूती का टोनिक भी देने की व्यवस्था करनी होगी. सभी सरकारी एवं निजी कार्य स्थलों पर भी दिन में मात्र आधा घंटा ही सही शारीरिक खेल कसरत करवाने के लिए अनिवार्य दिनचर्या में लागु करना होगा इसके सुखद परिणाम मिलेंगे जिस कर्मी का स्वास्थ्य अच्छा होगा वह मानसिक कार्यों को अधि कुशलता से करने में तो सहायक होगा ही बल्कि छोटी मोटी बिमारियों से भी बचा रहेगा. साथ ही अपनी युवा पीढ़ी को भी खेलों में रूचि लेने अथवा प्रेरित व् प्रोत्साहित करने में भी सहायक साबित होगा. एक बात स्पष्ट है खिलाडी अथवा खेल प्रेमी अन्य आम आदमी की अपेक्षा शारीरिक और मानसिक रूप से अधिक मजबूत होते हैं और वे जीवन में विपरीत परीस्थितियों में भी डटकर सामना करने में सक्षम होते हैं. आज भारत वर्ष को ऐसे ही मजबूत देशवासियों की जरुरत है तभी हम खेलों सहित अन्य क्षेत्रों में सफल होंगे. देश फिर से सोने की चिड़िया हो जायेग तथा डॉ इक़बाल के बोल “सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा, हम बुलबुले है इसके ये गुलसितां हमारा “ गूंजने लगेगा.

इन तमाम उपायों के रहते यदि अगले पांच वर्षों में भारत देश वर्ष में भी सवा करोड़ की घनी आबादी में से हमें कम से एक हजार खिलाडी तो जरुर जुटा लेंगे जो गौरवशाली तिरंगे को विश्व पटल पर गर्व से अपने मजबूत हाथों में थामने के साथ ही साथ भारतवर्ष का नाम खेल दुनिया में भी रोशन करने में जरुर कामयाब होंगे. और पोडियम पर मैडल लेते ही गर्व से राष्ट्र गान “जन गण मन” का उद्घोष सुनकर पूरा भारत देश ख़ुशी से झूम उठेगा.

 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार, द्वारका परिचय के संपादक तथा इंडिया स्पोर्ट्स संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं)

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