डॉ अशोक यादव अध्यक्ष, द्वारका श्री रामलीला सोसाइटी प्राचीन काल से ही रामायण का बहुत अधिक महत्व रहा है। आदिकाल से ही जैन आचार्यों द्वारा वाम्बरामायण, तमिलरामायण, भावार्थरामायण, मराठीरामायण आदि की रचना की गई। वाल्मीकि जी द्वारा 24000 श्लोको में रामायण की रचना संस्कृत में की गई। रामायण के द्वारा राम के आदर्श रूप का वर्णन किया गया है। इसमें राम को साधारण मानव और मर्यादा पुरूषोत्तम के रूप में चित्रित किये गये है। पिता की आज्ञा का पालन करने के लिये 14 वर्षोंतक वनवास में रहना पड़ा। सीता ने अपना पति धर्म निभाते हुए अपने पति के साथवन में जाना स्वीकार किया और भरत ने भी अपने भाई के प्रति ज्येष्ठ भ्राता धर्म निभाते हुए राज्याभिषेक को स्वीकार नहीं किया।
आदर्श के रूप में राम को प्रस्तुत किया गया है। जैसे आज भी जिस परिवार में असीम प्रेम और सुख-शान्ति है तो हम उस परिवार को राम-राज्य की संज्ञा देते हैं। आज के समय में पुत्र पिता की आज्ञा का पालन करता है तो हम उसेआदर्शपुत्र की संज्ञा देते हैं। आज के समय में धर्मपरायण स्त्रियों को सीता की संज्ञा दी जाती है।रामायण के अन्दर राम को विष्णु का अवतार बताया गया है। हनुमानजी को परमभक्त और राम की शाक्ति के रूप में दिखाया गया है। जिस तरीके से हम राधा जपते है तो कृष्ण स्वयं चले आते हैं।वैसे ही हनुमानजी का जाप करने से राम दौड़े चले आते हैं।
निष्कर्ष में हम कह सकते हैं कि आज के युग में रामलीला का बहुत महत्व है। यदि बच्चे इसे देखते हैं तो उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिलता है जैसे राम भगवान होते हुए भी इस पृथ्वी पर साधारण मानव की तरह जीवन व्यतीत करते हैं और इससे हमें अपने माता-पिता, भाई-भाभी और सगे सम्बन्धियों के प्रति अच्छा व्यवहार करने का संदेश मिलता है। इसमें राम ने रावण से साधारण मनुष्य के रूपमें युद्ध करके बुराई पर अच्छाई की विजय दिखाई गई।
अतः हम कह सकते हैं कि हमें राम की तरह आदर्शपुत्र, भाई, पति, शिष्य बनना चाहिए।
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