भारतीय योग संस्थान के साधक घर-घर पहुंचा रहे हैं योग की महिमा

भारतीय योग संस्थान के स्थापना दिवस 10 अप्रैल पर विशेष 
भारत वर्ष में योग साधना की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शंकर योग के आदि आचार्य एवं भगवान श्रीकृष्ण योगीराज माने जाते हैं। वेदों में योग का गंभीर विवेचन किया गया है। योगदर्शन के प्रणेता महर्षि पातंजलि पहले ही सूत्र में लिखते हैं कि "अथ योगानुशासनम्"  अर्थात् जीवन में अनुशासन लाने वाली क्रियाएँ ही योग है। भारतीय योग संस्थान, दिल्ली के संस्थापक स्व. श्री प्रकाशलाल जी ने योग के महत्व को इन शब्दों में निरूपित किया है-"योग तो जीवन जीने की एक कला है, अन्तर्मुखी होने का साधन है, परमात्मा से मित्रता करना, उन्हें सखा के रूप में प्रदर्शित करना और उनसे ही जीवन चलाने का आदेश मिले-ऐसी भावना तैयार करना ही योग है।"
दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में आयोजित योग दिवस समारोह के दौरान उपस्थित
भारतीय योग संस्थान के पदाधिकारी एवं अन्य गणमान्य

मानव-जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण होने के बावजूद लोगों के पास विस्तृत जानकारी न होने से योग आज भी समाज के साथ समरस नहीं हो पाया है। अत: लोग योग के महत्व को जानें, समझें और इसके साथ जुड़ें-इन्हीं उद्देश्यों को लेकर दिल्ली में भारतीय योग संस्थान की स्थापना की गई थी। 1967 में स्थापित यह संस्थान अब विशाल वट वृक्ष का रूप ले चुका है। भारत ही नहीं, विदेशों में भी संस्थान के कर्मठ शिक्षक और कार्यकर्ता बिना किसी लोभ- लालच के योग को घर-घर तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत हैं। 

भारतीय योग संस्थान के प्रधान श्री जवाहर लाल जी बताते हैं कि "जीयो और जीवन दो' के सिद्धान्त पर चलने वाले संस्थान के शिक्षकों एवं कार्यकर्ताओं के प्रयासों का ही प्रतिफल है कि देश भर में 1800 से भी अधिक निः शुल्क योग साधना केन्द्र चल रहे हैं। इन केन्द्रों में प्रतिदिन लाखों लोग योगाभ्यास करते हैं। देश के बाहर युके, आस्ट्रेलिया, मारीशस एवं फीजी में भी संस्थान की ओर से योग साधना केन्द्र चलाए जा रहे हैं। 
छत्रसाल स्टेडियम में योग साधना का विहंगम दृश्य

संस्थान के महामंत्री श्री देशराज जी कहते हैं कि प्रातः कालीन दैनिक योगाभ्यास प्रणायाम ध्यान साधना का क्रम तो निरंतर चलता ही रहता है। साथ ही दो दिवसीय से लेकर सप्तदिवसीय तक के शिविरों में प्रत्येक अवस्था के स्त्री-पुरुष पंथ जाति एवं समुदाय की परिधि से ऊपर उठकर "जीओ और जीवन दो" का संदेश दुनिया भर को दे रहे हैं। नई पीढ़ी में बल, बुद्धि और माधुर्य जैसे उदात्त गुणों को भरने के लिए बच्चों एवं युवाओं के लिए विशेष योग शिविर केंद्र चलाए जा रहे हैं। जिनमें अष्टांग योग, आसन, प्राणायाम, ध्यान एवं मुद्राएँ आदि के बारे में बताने के साथ-साथ आध्यात्मिक एवं नैतिक रूप से उन्नति के भी सूत्र बताए जाते हैं।
संस्थान के प्रवक्ता श्री राजकुमार जैन ने बताया कि संस्थान के कार्यों को और अधिक गति देने के दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र में भारतीय योग संस्थान के पांच मंजिली भवन में वर्षों से नि:स्वार्थ भाव से कार्य करने वाले प्रवीण वानप्रस्थियों को योगाभ्यास एवं प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। 5000 वर्ग मीटर में फैले इस भवन में बाहर से आने वाले साधकों के लिए आवास, योग साधना केन्द्र, पुस्तकालय, ध्यान कक्ष आदि हैं। साधकों के लिए यहां रहने, खाने आदि के लिए किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता।

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