माँ ओ री माँ


भावनापूर्ण भाव से माँ को पुकारना ही उनकी साधना है 
 जो जितनी भावना से माँ शब्द का उच्चारण भर करता है 
उसे उसकी शक्ति का आवश्य अनुभव होता है । 


मधुरिता 
माँ ओ री माँ 

 मुंह फेर जिधर देखूं मुझे तू ही नज़र आए 
 मुंह फेर जिधर देखूं मुझे तो तू ही नज़र आए 

पहाड़ों में तू है नजारों में तू है 
फिजाओं में तू है बहारों मे भी तू है 

अम्बर में तू है दिशाओं में तू है 
जहाँ जहाँ नज़र पड़े वहां वहां ही तू है 
मुंह फेर जिधर देखूं मुझे तू ही नज़र आए 

तेरी शक्ति का है अवतार ओ माँ 
संसार चले न माँ तेरे बिना 

तेरी शक्ति बिना तो एक पत्ता ना हिले 
ऐसा तेरा दरबार है माँ ऐसा तेरा दरबार ओ माँ 
मुंह फेर जिधर देखूं मुझे तू ही नज़र आए 

दर्शन दे दो माँ दर्शन दे दो 
देर हुई अब तो दे दो दर्शन 

तुम बिन कोन सुनेगा मैया 
मेरे जीवन की करुनाई 
सफल कर दो ओ मैया 
मेरा जीवन सफल कर दो ओ मैया 

तू है मेरी मैया मैं भी तो हूँ तेरी 
मुंह फेर जिधर देखूं मुझे तू ही नज़र आए 
मैया तू ही तू नज़र आये 


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