एक सन्देश अभिभावकों के नाम

डॉ. सरोज व्यास 
प्रधानाचार्य, इंदरप्रस्थ विश्व विद्यालय, दिल्ली

2014 के आगमन के साथ ही अभिभावकों के सामने अपने जिगर के टुकड़ों को प्रतिष्ठित एवं उच्च-मापदंडों पर आधारित शैक्षिक विद्यालयों में दाखिला दिलाने की चुनौती उपस्थित हो गई | समाजीकरण की प्रक्रिया में परिवार के बाद दायित्व विद्यालयों के कंधों पर रखा गया है | ऐसे में प्रत्येक माता-पिता चाहते है, कि उनकी संतान ऐसे स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करें, जहाँ सर्वांगीण विकास की संभावनाएं विद्यमान हो | बाल्यकाल में बालक का व्यक्तित्व कच्ची-मिट्टी के समान है, जिसे परिवार में अभिभावकों एवं स्कूलों में शिक्षक उपयोगी, सुदृढ़ एवं श्रेष्ठ आकर-प्रकार देकर राष्ट्र की धरोहर के रूप में निर्माण करके अपने कर्तव्य का निर्वहन करते है |

स्व-अनुभव एवं वर्तमान परिवेश के आधार पर उन सभी अभिभावकों से विनम्रता पूर्वक कुछ सुझाव देना चाहती हूँ, जो अपने बच्चों को प्रथम बार शिक्षालयों में प्रवेश करवाने जा रहे है |

* स्कूलों के आंकलन का मापदंड भौतिक सुविधायों (भवन, वातानुकूलित कक्ष इत्यादि ) को न बनाये, क्योंकि घर एवं विद्यालयों के वातावरण में असमानता से व्यवहार में असहजता, संकोच एवं सामंजस्य का अभाव उत्पन्न होता है |

* बच्चें कम से कम ६ घंटे शिक्षकों के साथ बिताते है, ऐसे में अभिभावक अपने बच्चों की रूचि-अरुचि, मानसिक स्तर, शारीरिक क्षमता तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी अवश्य सम्बन्धित शिक्षक-शिक्षिकाओं को उपलब्ध करवाएं | बालकों के सम्पूर्ण विकास के लिए यह उपयोगी होगा |

* घर-परिवार से ही बालक की प्रारम्भिक शिक्षा आरम्भ हो जाती है, अत: माता-पिता का दायित्व है, कि वे मानवीय मूल्यों की जानकारी शैशवास्था से ही अपने बच्चों को दे | आदर्श स्वरूप की आशा केवल शिक्षकों से किया जाना अनुचित होगा |

* स्कूल में प्रवेश दिलाने मात्र से माता-पिता अपने दायित्व से मुक्त नहीं हो जाते, प्रतिदिन वहाँ पर करवाएं गयें क्रिया-कलापों की जानकारी अपने बच्चों से अवश्य लें तथा समय-समय पर प्रगति एवं अवरोध की जानकारी विद्यालय प्रशासन एवं सहयोगी शिक्षकों को दे |

शिक्षा समाज, सरकार, विद्यालय एवं अभिभावकों की सांझी जिम्मेदारी है, जिनमें मुख्य स्तंभ अभिभावक एवं स्कूल होते हैं | आदर्श प्रतीक शिक्षकों को भी पद की गरिमा के अनुकूल बिना किसी पक्ष-पात, भेदभाव तथा पूर्वाग्रह के राष्ट्र के भावी-नागरिकों के निर्माण में नींव का पत्थर बनना होगा, तभी पूर्ण साक्षरता के स्वपन को साकार किया जा सकता हैं |

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