शिक्षण की आधुनिक पद्दति “रोल प्ले” का अद्दभुत उदहारण रामलीला


सुखविंदर कौर

प्रिय पाठकों, सभी शिक्षविद्द इस बात को मानते हैं कि “रोल प्ले” अर्थात स्वंम पात्र बनकर अभिनय के द्वार सीखना, शिक्षण का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है क्योंकि इसमें विधार्थी स्वमं पूर्ण रूप से सक्रिय रहता हैं.धन्य है हमारे देश की प्राचीन शिक्षा पद्दति जिसमें हम ठीक इसी प्रकार रामायण ने पात्रों को स्वमं में उतारकर बहुत ही सुन्दर तरीके से अपनी धार्मिक संस्कृति की विरासत को नै पीढ़ियों तक “रामलीला” के रूप में पहुंचाते हैं. रामलीला के दर्शकों से मेरा सदैव अनुरोध रहा है कि रामलीला को न केवल देखे और सुने बल्कि इसमें जो भी अच्छा समझ आये उसे अपने जीवन में अवश्य अपनाए.

अपने जीवन में किसी मंथरा को न आने दें. कैकेयी-दशरथ संवाद के दृश्य इस बात का संकेत देते हैं कि हमारे जीवन में भी कभी कभी कोई मंथरा आ गई है, यह मंथरा (नकारात्मक बुद्धि) मित्र, रिश्तेदार अथवा परिस्थिति किसी भी रूप में छिपी हो सकती है और हँसते खेलते जीवन के परिदृश्य को पल भर में विषैला कर सकती है, आइए हम ऐसी नकारात्मक शक्तियों को पहचाने और इन्हें अपनी सोच पर प्रभावी न होने दें.

जीवन के वास्तविक आनन्द को क्षणिक सुख के लिए ना गवाएँ सीता हरण कि लीला से श्री राम संकेत देते हैं कि भौतिक सुख की उलझन कभी कभी जीवन के वास्तविक आनन्द से वंचित कर सकती है सुप्रसिद्ध कवि स्व. श्री योगेश छिब्बर जी ने बहुत खुबसूरत कहा है-

“नश्वर सुख कि एक घडी बस
जाने क्या दुःख बो जायेगी
एक हिरन की खल मिलेगी
लेकिन सीता को खो जायेगी”

जातिवाद से मानवता श्रेष्ठ
आज देश में जहाँ भी जाति एवं वर्णवाद का विषैला जहर सम्पूर्ण रूप से समाप्त नहीं हुआ है वहाँ श्री राम शबरी के बेर खाते हैं और वो भी झूठे बेर, और वो भी वर्णवाद के युग में. कितना अदभुत दृश्य है यह सन्देश देने के लिए कि मानव जाति के प्रेम के आगे छुआ छूत का कोई महत्व नहीं है.

लक्ष्य प्राप्ति के लिए सकारात्मक शक्तियों का एकीकरण आवश्यक
श्री राम जी विष्णु का अवतार थे उनमें वे सभी शक्तियां निहित थी जिससे वे बड़े से बड़े रावण का भी अकेले ही संहार कर सकते थे. फिर भी श्री राम ने सुग्रीव का साथ लिया, बजरंगबली कि सोई शक्तियों को जगाया, विभीषण का स्वागत किया समुंद्र देवता से भी नम्रता से रास्ता माँगा, दंभ व् अहंकार नहीं किया.

हमें सिखलाया कि जंगल और लंका में जहाँ राक्षसी प्रवतियों का बोलबाला था वाही अच्छी शक्तियां भी मौजद थी, परन्तु अलग अलग बिखरी हुई थी. उनका असितत्व नजर नहीं आ रहा था, एक कुशल नेतृत्व में अच्छे लोगों के एक हो जाने पर बड़े से बड़े रावण का भी सरलता से विनाश किया जा सकता है, रावण वध का दृश्य इसी तरफ इशारा करता है.

आइए रामायण से ऐसी और भी अनेक बातें अपनाकर अच्छी शक्तियों को एक मंच पर एकत्र करें तथा भ्रष्टाचार, आतंकवाद, गरीबी एवं स्वंम की बुराइयों पर विजय प्राप्त करके देश को सुनहरी भविष्य की तरफ ले जाएँ.

“न तलवार न चौकीदार,
हमारे रक्षक हैं हमारे संस्कार.

जय श्री राम

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