बेटियां घर की सुंदरता, घर की रौनक होती हैं।

प्रीति शर्मा
सचिव -प्रदेश महिला कांग्रेस
बेटियां घर की रौनक, घर की सुंदरता होती हैं। बिना स्त्री/बेटी के मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। हम भी किसी की बेटी है और मैंने भी एक बेटी को जन्म दिया है जिसकी उम्र गुडिया (पांच वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता बच्ची) के जितनी ही है। लेकिन इस घटना के बारे में जानने के बाद एक अजीब सा डर अंदर घर कर गया है। कई कड़े कानून बन जाने के बाद भी दरिंदगी की इस ताजा वारदात ने ये जता दिया है कि सिर्फ कड़े कानून बना देने भर से लोगो की मानसिकता में बदलाव लाना संभव नहीं है।

पुलिस पर सारा दारोमदार छोड़ कर समाज खुद के बदलने की जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। निसंदेह हर एक वारदात में पुलिस एक अपरिहार्य पक्ष है लेकिन उसकी भूमिका वारदात के बाद शुरू होती है जबकि अपराध करने से बचने की बुनियादी जवाबदेही व्यक्तिगत है ; अगर जुर्म थोपा नहीं गया है तो । ताजा वारदात में पुलिस ने गलतियाँ की है और दोषी पुलिस वालों को कठोर से कठोर सजा दी जानी चाहिए। और जो नजारा सडकों पर दिख रहा है वो कुछ मात्रा में सही कहा जा सकता है लोगो की पुलिस के प्रति नाराजगी नाजायज नहीं कही जा सकती क्योकि पुलिस के रवैये में अभी भी वो बदलाव नहीं आया है जिसकी दरकार है ।

समाज को अपने भीतर भी झांकना होगा। इस बिटियाँ के मामले में आरोपित के विरुद्ध समाज की सक्रिय पहल और आरोपी के परिवार का सामाजिक बहिष्कार और परिवार के लोगो का आरोपी को कड़ी सजा देने की मांग एक अच्छी शुरुआत है। इन सब बातों के दूरगामी परिणाम होगे। इससे पहले के मामलों में समाज की तरफ से ऐसी प्रतिकिर्या नहीं आई थी ।

आज बेटियां/महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में बढ-चढ़कर अपनी भूमिकाएं निभा रही हैं और यह कहना गलत नहीं होगा कि वे अपना उत्तरदायित्व पुरुषों से कहीं अधिक अच्छी तरह और ईमानदारी से निभा रही हैं। जहां आज महिलाएं कार्यरत हैं वहां भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी बहुत कम देखने को मिलती है। क्योंकि महिलाएं मूलरूप से पुरुषों से अधिक संवेदनशील और जिम्मेदार होती हैं। आज जरूरत है बेटियों का महत्व समझने की, उन्हें सम्मान देने की; क्योंकि हमारी सभ्यता-संस्कृति की वही सच्ची प्रतिनिधि है और आगे भी होगी।

एक जाग्रत समाज ही व्यक्तियों और संस्थाओं की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। इसलिए खुद भी जागों और ओरों को भी जगाओं क्योकि इन आंदोलनों में जलाई गई मोमबतियों का थोडा भी उजाला भी समाज के भीतर आ जाये तो समाज इन बुराइयों से बच सकता है ।

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