शिक्षा - एम. ए. (अंग्रेजी साहित्य, कानपुर)
एम. एस. सी (साइको थेरपी, मुम्बई)
निवास स्थान - ए-65 पालम एक्सटेंशन
सैक्टर सात, द्वारका, नई दिल्ली-110075
M: 8527836735
उस शुभ दिन की करुं प्रतीक्षा जब देखूंगा अपना देश ।
उत्तुंग हिमालय के शिखरों पर सजी धवल हिमखण्ड शिलाए
कल-कल झरनों की कलरव से तान मिलाती गिरि बालाएँ।
साखुं देवदार के झुरमुठ से लिपटी फूलों की घाटी
देखा सब जग कहीं न देखी मातृ भूमि जैसी माटी।
कृष्णवर्ण के धनमंडल से उतर रही वर्षा अविराम
मेघों की गर्जन का उत्तर देते मोरों के कोहराम।
लदी आम शाखा के ऊपर गाती कोयल का संदेश
उस शुभ दिन की करुं प्रतीक्षा जब देखूंगा अपना देश ।
दिन भर बरसे मेह निश भर मेंढक दल करते क्रन्दन
रवि सतरंगी धनुष तान कर बदली में छुप जाते छिन-छिन।
दूर क्षितिज तक बिछी हुई पीली सरसों की फुलवारी
नील गगन की छत के नीचे हरी-भरी धरती की क्यारी।
सजे-धजे गृह द्वार छतों पर गातीं नव बधुओं के सरगम
जीवन का संगीत सुनाते हल बैलों कृषकों के संगम।
कहीं नहीं संताप मिट सका देखे कितने देश नरेश
उस शुभ दिन की करुं प्रतिक्षा जब देखूंगा अपना देश ।
तप्त ग्रीष्म के राह पार कर भीग-भीग कर आते सावन
कितना प्रिय कितना सुखदायक बहिनों की राखी का बंधन।
कतिक में खुशहाली के क्षण घर-घर भर देती दीवाली
दीप शाखाओं के आंगन में शोभित पकवानों की थाली।
रंग-बिरंगे फागुंन के संग नृत्य गीत कर आती होली
उड़े गुलाल छुटे पिचकारी फाग गवैयों की हमजोली।
भ्रमण-भ्रमण कर थकी आत्मा देती है ऐसे निर्देश
उस शुभ दिन की करुं प्रतिक्षा जब देखुंगा अपना देश।
मातृभूमि का आंचल धोती गंगा-जमुना की धाराएं
सागर करते पद प्रक्षालन मुकुट सजातीं बन मालाएं।
बाग बगीचों के आभूषण धरती को भरपूर सजाएं
ऋतु-ऋतु में परिधान बदलते तरह-तरह के वृक्ष लताऐं।
सुजलां सुफलां शष्य ष्यामलां गीत गा रहीं चतुर्दिशाएं
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब जन मिल कर शीश नवाएं।
मेरा देश पुकारे मुझको नहीं सुहाता है परदेश
उस शुभ दिन की करुं प्रतिक्षा जब देखूंगा अपना देश ।