Latest film review : Shor in the city & Chalo Delhi

प्रेमबाबू शर्मा

शोर इन द सिटी 

 इन दिनों लीक से हटकर फिल्में बन रही है उनके टाईटल तो अटपटे होते ही साथ ही कहानी भी कही वर्तमान की समस्याओं पर आधारित होते है। इस फिल्म की कहानी  मुंबई की चाल में रहने वाला तिलक (तुषार कपूर) जो अंग्रेजी किताबों की पाइरेसी करता है जबकि अपनी पत्नी सपना (राधिका आप्टे) कीक नजर में वह एक प्रकाशक है। उसके दो लफंगे दोस्त रमेश (निखिल आडवाणी) और मंडूक (पिताबश त्रिपाठी) भी उसकी ही तरह अवैध कार्यो में लिप्त हैं। गणपति पूजा का समय है। ऐसे में एक प्रवासी भारतीय अभय (सेंधिल राममूर्ति) को कुछ गुंडे जबरन वसूली के लिए तंग करने लगते हैं। गुंडों को अभय से पांच लाख रुपये चाहिए। इसी बीच एक युवक सावन (सुदीप किशन) की जिंदगी भी परेशानी में हिचकोले खा रही है। सावन को क्रिकेट की अंडर-19 टीम में चुना जाना है, जिसके लिए एक सेलेक्टर उससे 10 लाख रुपये मांगता है। एक दिन जब रमेश और मंडूक को लोकल ट्रेन से एक बैग में बंदूक और बम मिलते हैं तो उनकी लाइफ में एक तूफान सा आ जाता है। टीपू (अमित मिस्त्री) की मदद से सभी एक बैंक लूटने का प्लान बनाते हैं। 


फिल्म से सेन्ट्रल कैरेक्टर से तुषार कपूर को हटा भी दें तो यह फिल्म पिताबश त्रिपाठी (मंडूक) जैसे चरित्र कलाकार की वजह से देखनी चाहिए। तुषार को अपनी इस होम प्रोडक्शन में संजीदा अभिनय करने का अच्छा मौका मिला है और उसका उन्होंने फायदा भी उठाया है। एक बेबस व्यवसायी के रूप में सेंधिल राममूर्ति प्रभावित करते हैं। छुटभैया नेता अमित मिस्त्री और निखिल आडवाणी ने भी फिल्म में बांधे रखा है। प्रीति देसाई और राधिका आप्टे के रोल्स में ज्यादा गुंजाइश थी ही नहीं।अगर बात करे गीत-संगीत ता ेधीमे धीमे.. और साईबो गीत में रॉक फ्यूजन की झलक है, जो सीन्स के अनुसार मले खाते है। यहां तक कि बैकग्राउंड म्युजिक भी दमदार है. फिल्म के दो  निर्देशक राज निदिमो और कृष्णा डीके की यह एक एक्सपेरिमेंटल फिल्म है जिसमें किरदारों के इंट्रोडक्शन में देरी अखरती है किन्तु, असल कहानी इंटरवल के बाद शुरु होती है। 


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चलो दिल्ली 

क्रीबन सत्तर के दशक में  तनूजा और रंधीर कपूर की सुपर हिट फिल्म आई थी हमराही । फिल्म में एक दुसरे के बिल्कुल विपरीत व्यवहारिक सोच रखने वाले नायक व नायिका अलग अलग वाहनों पर अपनी यात्रा का सफर करते है। इस फिल्म में कही  बांबे टू गोवा एक बस में सफर से जुड़ी घटनाओं का भी जिक्र है। यह भी उसी तर्ज पर बनी है। 



निर्देशक शशांत शाह ने सबसे ज्यादा कमाल का काम विनय पाठक से लिया है। फिल्म के हर फ्रेम पर उनकी निर्देशकीय पकड़ मजबूत साबित हुई है। अभिनय यूं तो पूरी फिल्म पर विनय पाठक ठेठ दिल्ली वाले कारोबारी के तौर पर अपनी छाप छोड़ते हैं, पर लारा दत्ता ने भी इस फिल्म में एक कामयाब कार्पोरेट लेडी का किरदार बखूबी निभाया है। एक पुराने आइटम सांग लैला मैं लैला.. को छोड़ दें तो फिल्म में संगीत अच्छा लगता है।

फिल्म की कहानी यह नखरीली नायिका मिहिता बनर्जी (लारा दत्ता) की फ्लाइट मिस होने के बाद सड़क मार्ग से उसके दिल्ली पहुंचने की दास्तान है, जिसमें उसके हमराही बने हैं उनसे बिल्कुल विपरीत व्यवहारिक सोच रखने वाले वाले मनु गुप्ता (विनय पाठक)। इनका सफर ट्रक, जीप, ऊंटगाड़ी, ट्रेन, कार तक में चलता है। इसमें जीवन के तमाम रंग भी बारी-बारी से सामने आते हैं। दिल्ली के ट्रैफिक से लेकर सफर में होने वाले आम हादसे, सोसाइटी में लाइफस्टाइल के गैप और ज्यादा खुश रहने वाले के जीवन में छाये रहने वाले गम बखूबी दर्शाए गए हैं। फिल्म में अंतिम भाग में मिहिता के पति विक्रम (अक्षय कुमार) की एंट्री के बाद तो यह फिल्मी ड्रामा नई ऊंचाइयां छू जाता है।


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