4. महात्मा भोली बाबा आश्रम स्थल, प्रेमधाम नामनगर, बौंसी: इनके अनुयायी देश तथा विदेश में भी है। यहाँ पर भी यात्री हजारों की संख्या में आते रहते हैं।
5. साहित्यमनीशी आनंदशंकर माधवन द्वारा स्थापित मंदार विद्यापीठ, अद्वैत मिशन एंव शिवधाम भी दर्षनीय स्थल है।
6. महर्शि मेंहीं धाम : महर्शि मेंहीं परमहंस जी महाराज की स्मृति में स्थापित आश्रय स्थल बौंसी तथा मनियारपुर में भी उनके अनुयायियों का आगमन होता रहता है जो मंथन गिरिमंदार का भी दर्षन करना नही भूलते हैं।
7. पापहारिणी कुंड: मंदार पर्वत के पाद में स्थित एक मनोहारिणी कुंड है। किंवदंती है कि इसमें स्नान के फलस्वरूप चोल राजा छत्रसेन चर्मरोग से मुक्त हो गये थे। पुरातत्ववेता डा. आर. डी. बनर्जी के अनुसार इस सरोवर का निर्माण राजा आदित्य सेन की धर्मपत्नी रानी कोण देवी ने छठी शताब्दी में कराया था। मकर संक्रान्ति के अवसर पर हजारों तीर्थयात्री पापहारिणी कुंड में स्नान करके मंदार पर्वत के शिखर पर नंगे पाँव चढ़ते हैं। कुंड के बीचोंबीच एक कमलपुश्प के आकार का लक्ष्मीनारायण मंदिर का निर्माण किया गया है जिससे यहाँ पर तीर्थ यात्रियों की संख्या में हाल के वर्षों में काफी वृद्धि हुई है।
8. सीताकुंड - पर्वत के ऊपर एक छोटा सा कुंड़ है जिसे चक्रवत्र्य कुंड भी कहते है। ऐसा कहा जाता है कि इसी कुंड में स्नान कर माता सीता ने यहाँ पर छठ व्रत किया था। भगवान श्री रामचन्द्र जी ने महाराज दशरथ जी का तर्पण भी यहाँ पर किया था।
9. शंख कुंड - पर्वत पर शंख के आकार का एक और कुंड है। इसका आकार ऊपर से देखने पर छोटा लगता है परन्तु सुखाने पर यहाँ एक गहरा तथा विशाल कुंड मिला। कुंड के तल में एक विशालकाय शंख भी देखा गया। ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन से प्राप्त हलाहल का पान भगवान भोले शंकर ने इसी शंख से किया था।
10. नरसिंह मंदिर: एक गुफा में नरसिंह भगवान की प्रतिमा भी है। इस अँधेरी गुफा में भगवान नरसिंह की आँखें चमकती थीं । परंतु अब नहीं चमकती क्योंकि इनकी आखों से रत्न निकाल लिया गया है।
11. पर्वत के मूल में भी अनेक प्रतिमाएँ देखी गई थीं। जैसे-मां दुर्गा, सरस्वती, कालिका इत्यादि की प्रतिमाएँ जो कालान्तर में गायब हो गये।
12. शिखर मंदिर में भगवान मधुसूदन जी के चरण चिन्ह भी हैं जिसे बौद्ध मतावलंबी भगवान बुद्ध के, जैंन मतावलंबी भगवान वासुपूज्य के तथा श्री चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी उन्हें श्री चैतन्य महाप्रभु के चरण-चिन्ह मानते आ रहे हैं। यहाँ पर भगवान गणेश तथा भगवान भोलेबाबा की भी प्रतिमाएँ पाई गईं हैं । इसलिए यहां पर हिन्दू, बौद्ध, जैन, शाक्त तथा शेव के मतावलम्बी भी बड़ी संख्या में सालों भर आते रहते हं। इसी तरह यहाँ पर अनगनित दर्षनीय स्थल हैं यथा ब्रह्माजी, कामाख्या, भगवान विष्वनाथ जी के मंदिर भी हैं। इसके साथ-साथ आकाश गंगा, गुप्त गोदावरी, रामझरोखा, गया कुंड, शुकदेव मुनि की गुफा, कलियुग की प्रतिमा, लखदीपा मंदिर, कामधेनु गाय, श्री नाथ मंदिर इत्यादि भी हैं।
इस तरह मंदार के पांच कि. मी. के दायरे में ही काफी दर्षनीय स्थल हं जिन्हें देखने के बाद कोई भी पर्यटक आजीवन भूल नहीं सकता। यहाँ पर आने वाले पर्यटकों की संख्या 50 हजार प्रतिवर्ष से भी अधिक है।
अतः मंदार क्षेत्र में पर्यटन की असीम संभावनाएँ हैं। अगर सरकार द्वारा थोडे बहुत सुव्यवस्थित प्रयास भी किए जाएँ तो इस क्षेत्र का पर्यटन द्वारा भी विकास किया जा सकता है। अभी भी इसमें कुछ सुधार की आवष्यकता है यथा-
मंदार पर्वत के ऊपर जाने के लिए राजगीर की तरह रज्जू मार्ग
(रोपवे ) का निर्माण ।
ध्वनि तथा प्रकाश व्यवस्था (लाइट एंड म्यूजिक सिस्टम ) द्वारा मंदार क्षेत्र के पौराणिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक , सामाजिक, साहित्यिक तथा आध्यात्मिक महत्वों का प्रदर्षन हो । साथ ही इसमें मंदार क्षेत्र के विद्वानों, समाज सेवियों, स्वतंत्रता सेनानियों, जय प्रकाश नारायण नीत ‘संपूर्ण क्रान्ति’ के क्रांन्तिकारियों के कार्यो का भी प्रदर्शन होना चाहिए ।
विभिन्न धर्मों तथा समुदायों यथा शेवों, शाक्तों, हिन्दुओं, जैनियों बौद्धों आदि का संगम स्थल होने के कारण इसकी महत्ता और गरिमा बहुत बढ़ जाती है । अतः इसका विकास और प्रचार अवष्य होना चाहिए।
मंथन गिरि मंदार को पर्यटन के क्षेत्र में जो स्थान अब तक नहीं मिला है वह अब मिलना ही चाहिए।
अगर उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखकर मंथन गिरि मंदार का विकास किया जाय तो यहाँ पर प्रतिवर्श आने वाले पर्यटकों की संख्या पचास हजार से बढ़कर एक लाख तक आसानी से हो सकती है जो एक ओर मंदार क्षेत्र में रहने वाले निवासियों के लिए विकास के द्वार भी खोल सकती है तथा दूसरी ओर इस अनन्य पावन स्थल को न केवल राष्ट्रीय बल्कि अन्तराष्ट्रीय क्षितिज पर भी सटीक स्थान दिलाने की ओर जरूरी कदम भी होगा ।